राजा भोज के काल में हुई थी भक्तामर काव्य की रचनाः तृष्टि दीदी भीलूड़ा/डूंगरपुर। भीलूड़ा दिगम्बर जैन मंदिर में अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर जी महाराज की मौन साधना के
जिनके घर कांच के हो वह कभी दूसरों के घर मे पत्थर नहीं फेंकते हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि उनका घर भी कांच का है। किसी ने पत्थर फेंका
भीलूड़ा। स्थानीय दिगम्बर जैन मंदिर में अन्तर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज की मौन साधना चल रही है। चातुर्मास के दौरान 5 अगस्त से प्रारम्भ हुई मौन साधना 21 सितम्बर तक
धर्म और धर्म के धारक जीवों की निंदा से दूर रहना सम्यग्दृष्टि का प्रमुख कर्त्तव्य है। अर्थात सम्यक दृष्टि व्यक्ति धर्म के मार्ग पर चल रहे व्यक्ति की आलोचना नहीं
आगम ( जैन शास्त्र) के मूल कर्ता तीर्थंकर भगवान हैं। आज हमारे पास जितना भी आगम है, वह सब तीर्थंकर की वाणी का ही हिस्सा है। तीर्थंकर भगवान बिना स्वार्थ,