भक्तामर स्तोत्र काव्य – 3 सर्वसिद्धिदायक बुद्धया विनापि विबुधार्चित-पाद-पीठ, स्तोतुं समुद्यत-मतिर्विगत-त्रपोहम् । बालं विहाय जल-संस्थित-मिन्दु-बिम्ब- मन्यःक इच्छति जनः सहसा ग्रहीतुम् ॥3॥ अन्वयार्थ : विवुध- देवों के द्वारा । अर्चित-पूजित हैं
पद्मपुराण पर्व इक्यासी में मां का बेटे के लिए संदेश और बेटे का मां के चरणों मे आने का प्रसंग हम सब के लिए प्रेरणा देने वाला है। इससे हमें
भाव को सदैव विशुद्ध बनाए रखना चाहिए। भावों की अशुद्धि के कारण जीवन में संकट के समय परिवार वाले भी साथ नहीं देते हैं। पद्मपुराण पर्व 97 में आए प्रसंग
छहढाला तीसरी ढाल मोक्ष का लक्षण, व्यवहार सम्यग्दर्शन सकल-करमतैं रहित अवस्था, सो शिव, थिर सुखकारी। इहिविधि जो सरधा तत्त्वन की, सो समकित व्यवहारी। देव जिनेन्द्र गुरु परिग्रह बिन, धर्म
छहढाला तीसरी ढाल आस्रव त्याग उपदेश,बन्ध,संवर,निर्जरा का लक्षण ये ही आतम को दु:ख – कारन, तातैं इनको तजिये। जीव-प्रदेश बँधै विधि सों सो, बन्धन कबहुँ न सजिये॥ शम-दमतैं जो