छहढाला तीसरी ढाल अजीव, पुद्गल, धर्म और अधर्म द्रव्य का लक्षण चेतनता बिन सो अजीव हैं, पञ्च भेद ताके हैं। पुद्गल पंच वरन रस गन्ध दो, फरस वसु जाके हैं॥
छहढाला तीसरी ढाल जीव के भेद, बहिरात्मा और उत्तम अंतरात्मा का लक्षण बहिरातम, अन्तर-आतम, परमातम जीव त्रिधा है। देह जीव को एक गिनै बहिरातम – तत्त्व मुधा है॥ उत्तम
छहढाला पहली ढाल पंचेन्द्रिय पशुओं के निर्बलता आदि अन्य दु:ख कबहूँ आप भयो बलहीन, सबलनि करि खायो अतिदीन। छेदन भेदन भूख पियास, भार वहन हिम आतप त्रास।।8।। अर्थ –
छहढाला पहली ढाल देवगति में वैमानिक देवों के दु:ख जो विमानवासी हू थाय, सम्यग्दर्शन बिन दु:ख पाय। तहँ ते चय थावर-तन धरै, यों परिवर्तन पूरे करै।।17।। अर्थ – कभी
छहढाला दूसरी ढाल गृहीत मिथ्याज्ञान का लक्षण एकान्तवाद-दूषित समस्त, विषयादिक पोषक अप्रशस्त। रागी कुमतिन कृत श्रुताभ्यास, सो है कुबोध बहु देन त्रास।।13।। अर्थ – जो शास्त्र एकान्त पक्ष से