पुरूष का स्त्री से, स्त्री का पुरुष से, पुरुष का पुरुष से, स्त्री का स्त्री से राग, वासना के साथ बात करने का, बुरे भावों से बात करने का, ऐसे कपड़े पहने का, ऐसे वचन बोलने का,ऐसे इशारे करने का जिससे वासना के भाव बन जाए तथा विवाह की चर्चा करना, स्त्रियों, पुरुष के साथ अधिक बात करने की इच्छा रखने से तथा भड़काऊ श्रृंगार करने से हमें ब्रह्मचर्य अणुव्रत में दोष लगता है। इससे यह व्रत भंग होने संभावना होती है और शुभ भाव गिरते हैं। शास्त्रों में इसे अतिचार कहा गया है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में ब्रह्मचर्य अणुव्रत के अतिचार का स्वरूप बताते हुए कहा है कि …
अन्यविवाहाकरणानङ्गक्रीडा-विटत्व-विपुलतृषः ।
इत्वरिकागमनं चास्मरस्य पञ्च व्यतीचाराः ॥60 ॥
अर्थात- अन्य विवाहाकरण -परिवार को छोड़कर अन्य के बेटे बेटियों का विवाह सम्बन्ध कराना, अनंगक्रीड़ा काम सेवन के अगों को छोड़कर अन्य अंगों से कामसेवन करना, विटत्व-शरीर से कामुक चेष्टा व वचनों से गालियाँ देना, जारपना स्त्रियों के स्वाँग/वेश बनाना, विपुलतृषा-कामसेवन की तीव्र अभिलाषा रखना और इत्वरिकागमन-व्यभिचारिणी स्त्रियों के यहाँ आना-जाना और उनसे सम्बन्ध रखना ये पाँच ब्रह्मचर्य अणुव्रत के अतिचार हैं।
ब्रह्मचर्याणुव्रत की रक्षा के लिए तत्त्वार्थसूत्रकार ने निम्नलिखित पाँच भावनाओं का उल्लेख किया है- स्वीरागकथा श्रवणतन्मनोहराङ्गनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणवृष्येष्टरसस्वशरीरसंस्कारत्यागः पञ्च अर्थात् स्त्रियों में राग बढ़ाने वाली कथाओं के सुनने का त्याग करना, उनके मनोहर अंगों के देखने का त्याग करना, पहले भोगे हुए भोगों के स्मरण का त्याग करना, गरिष्ठ एवं कामोत्तेजक पदार्थों के सेवन का त्याग करना और अपने शरीर की सजावट का त्याग करना इन भावनाओं से ब्रह्मचर्यव्रत सुरक्षित रहता है।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 66 वां दिन)
सोमवार , 7 मार्च 2022, घाटोल
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