चौथी ढाल
सम्यक्चारित्र के भेद, अहिंसा और सत्य अणुव्रत के लक्षण
सम्यग्ज्ञानी होय, बहुरि दिढ़ चारित लीजै।
एकदेश अरु सकलदेश, तसु भेद कहीजै।।
त्रस-हिंसा को त्याग, वृथा थावर न संघारै।
पर-वधकार कठोर निन्द्य, नहिं वचन उचारै।।10।।
अर्थ – सम्यक्ज्ञान प्राप्त करके पुन: सम्यक्चारित्र धारण करना चाहिए। सम्यक्चारित्र के दो भेद हैं-एकदेश और सकलदेश। यहाँ एकदेश चारित्र का ही वर्णन करते हैं, जिसे श्रावक पालन करते हैं। श्रावकों के बारह व्रत होते हैं, उन्हें क्रमवार कहते हैं। एकदेश चारित्रधारी श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का त्यागी होता है और एकेन्द्रिय (स्थावर) जीवों का भी अनावश्यक घात नहीं करता है। (यह पहला अहिंसाणुव्रत है) वह श्रावक स्थूल झूठ का त्यागी होता है और ऐसे वचन भी नहीं बोलता है, जो दूसरे के लिए प्राणघातक हों, दु:खदायक हों, कठोर हों या निन्दा के योग्य हों। (यह दूसरा सत्याणुव्रत है।) विशेषार्थ-अच्छे कार्यों को करने का नियम लेना और बुरे कार्यों को छोड़ना व्रत कहलाता है। हिंसादि पाँचों पापों का स्थूलरूप से एकदेश त्याग करना अणुव्रत है।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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