12
May
दूसरी ढाल
अगृहीत-मिथ्यादर्शन का लक्षण और जीवतत्त्व का लक्षण
जीवादि प्रयोजनभूत तत्व, सरधै तिन माहीं विपर्ययत्व।
चेतन को है उपयोग रूप, विन मूरत चिनमूरत अनूप।।2।।
अर्थ – जीव,अजीव,आस्रव,बंध, संवर,निर्जरा मोक्ष यह सात तत्त्व सारभूत है । इनके स्वरूप का उल्टा श्रद्धान करना अगृहीत मिथ्यादर्शन है । आत्मा का स्वरूप उपयोग (जानना-देखना) है । वह आत्मा अमूर्तिक,चैतन्य स्वरूप और अनूपम है ।
विशेष –
• जन्मजात संस्कारवश होता है ,तो उसे अगृहीत मिथ्यादर्शन कहते हैं ।
• आत्मा की ज्ञान-दर्शन शक्ति को चेतना कहते हैं ।
• चेतना की परिणति विशेष का नाम उपयोग है ।
• रूप,रस,गंध और स्पर्श सहित वस्तु को मूर्तिक और इसे रहित को अमूर्तिक कहते हैं ।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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