13
May
दूसरी ढाल
जीव तत्त्व का विपरीत-श्रद्धान
पुद्गल नभ धर्म अधर्म काल, इनतैं न्यारी है जीव-चाल।
ताकों न जान विपरीत मान, करि करे देह में निज पिछान।।3।।
अर्थ – पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल यह पांच अजीव द्रव्य है । इन सब से जीव द्रव्य का स्वरूप अलग है । मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादर्शन के प्रभाव से उसको न जानकर उल्टा मनाकर शरीर को ही आत्मा मानता है।
विशेष –
– इस छन्द में “ताको न जान” से मिथ्याज्ञान, “विपरीत मान” पद से मिथ्यादर्शन और “करि करे देह में निज पिछान” पद से मिथ्याचारित्र के भाव प्रकट होते हैं।
– पुद्गल आदि द्रव्य का वर्णन तीसरी ढाल में किया जाएगा।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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