23
Apr
छहढाला
पहली ढाल
देवगति में भवनत्रिक के दु:ख
कभी अकाम निर्जरा करै, भवनत्रिक में सुर-तन धरै।
विषय-चाह-दावानल दह्यौ, मरत विलाप करत दु:ख सह्यो।।16।।
अर्थ – कभी इस जीव ने अकाम निर्जरा की, तो मंद कषाय के परिणाम स्वरूप मरकर भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी देवों में से किसी एक का शरीर धारण किया परन्तु वहाँ भी हर समय इन्द्रियों के विषयों की चाहरूपी भयानक अग्नि में जलता रहा और मरते समय रो-रोकर दारुण दु:ख सहन किया।
विशेषार्थ – अनायास (बिना इच्छा के) भूख, प्यास, वेदना, रोग एवं आपत्ति-विपत्ति आ जाने पर समता परिणामों से सहन कर लेना अर्थात् मन्दकषाय द्वारा फल देकर कर्मों का स्वयं झड़ जाना अकाम निर्जरा कहलाती है। भवनवासी, व्यन्तरवासी और ज्योतिषी देवों को भवनत्रिक कहते हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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