13
Apr
पहली ढाल
त्रस पर्याय की दुर्लभता और तिर्यंचगति के दु:ख
दुर्लभ लहि ज्यों चिन्तामणि, त्यों पर्याय लही त्रसतणी।
लट पिपीलि अलि आदि शरीर, धर धर मारयो सही बहु पीर॥6।।
अर्थ – जैसे चिन्तामणि-रत्न बड़ी कठिनता से प्राप्त होता है, उसी प्रकार स्थावर से त्रस की पर्याय पाना अति दुर्लभ है। त्रस-पर्याय पाकर भी जब जीव ने लट, चींटी, भौंरा आदि विकलत्रय शरीर को बारम्बार धारण किया और मरण को प्राप्त हुआ, तो उसे वहाँ भी बहुत अधिक दु:ख ही सहना पड़ा।
विशेषार्थ – इच्छित पदार्थ देने वाले रत्नविशेष को चिन्तामणि रत्न कहते हैं। त्रस नामकर्म के उदय से प्राप्त हुई जीव की अवस्थाविशेष को त्रस कहते हैं।[/vc_column_text][/vc_column][/vc_row]
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