इंसान वही
होता जो हर परिस्थिति से लड़ना सीख जाए। अब तुम्हें भी लड़ना सीखना होगा। कोरोना
महामारी का अंत कब होगा उसका किसी को कुछ पता नहीं है। किंतु इस कोरोना ने इंसान
को शरीर, मन के साथ मानसिक रोगी बना दिया है। अब तुम्हें अपनी आत्मशक्ति
बढ़ाने के अलावा सावधानी एवं संयम के साथ इस महामारी के बीच में ही जीना सीखना
होगा। तभी इससे प्रदत्त मानसिक और शारीरिक रोग से छुटकारा मिलेगा। तभी परिवार, समाज और देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति बदल सकती है। अभी समय डरने
या डराने का नहीं बल्कि परस्पर सहयोग कर इस जंग को जीतने का है। यह सब सुदृढ़
आत्मशक्ति के साथ ही संभव होगा। इस बदलाव को लाने की शुरुआत हमें स्वयं से करनी
होगी। कोरोना महामारी के कारण विश्व भर में असंख्य लोग बेरोजगार हो गए हैं , व्यापार कम हो गया है । तनख्वाह कम कर दी गई है । कुल मिलाकर दुनिया
का हर देश आर्थिक तौर पर हिल गया है। धर्म की बात माने तो आगे भी ऐसी बिमारियाँ
इसी या अन्य किसी कारण से फैलने की स्थितियाँ बनेगी। कुल मिलाकर कर अब कुछ ऐसा
करना है, जिसे हम अपने घर और देश को पुनः पटरी पर लाने के लिए दूसरों पर
निर्भर ना रहे ।भगवान आदिनाथ के बताए षट्कर्म का समय वापस आ गया है, षट्कर्म अर्थात् असि, कृषि, मसि,
वाणिज्य, शिल्प और विद्या । इससे हम आत्म निर्भर बन सकते हैं । इस षट्कर्म से
ही हमारे जीवन में सारी उपयोगी वस्तुएँ आई हैं । इन कर्मों से ही परिवार, समाज और देश के लोगों की प्रतिभाएँ सामने आएंगी । यह षट्कर्म ही
हमारे जीवन यापन को सुगमता की ओर ले जा सकता है। अभी इसी की नितांत आवश्यकता है।
स्वकेन्द्रित होकर केवल स्वयं के उत्थान या लाभ-हानि को देखने का यह समय कदापि
नहीं है । अगर हम अभी भी नहीं संभल पाए तो फिर हमें कोई और क्या संभाल पाएगा ? «आत्मनिर्भर बने’ यह द्रष्टांत भगवान आदीनाथ कई वर्ष पूर्व ही कर चुके
थे। आत्मनिर्भर बनने के लिए हमें अपने आसपास योग्यता और उपलब्ध संसाधनों के अनुरूप
पाराम्परिक कामों को शुरू करना होगा , छोटे-छोटे उद्योगों को महत्व देना
होगा। साथ ही विदेशी ब्राण्ड की अपेक्षा में भारत में बनी वस्तुओं का उपयोग करना
सीखना होगा , ताकि हमारे देश का पैसा , हमारे ही देश के लोगों की उन्नति
में काम आए । यह सब भारत में संभव है क्योंकि यहाँ के लोग अनन्य प्रतिभाओं के धनी
हैं, विविधताओं में एकता के साथ यहाँ प्रायः देवीय गुणों का वास
देखा गया है। अर्थात यह सत्य ,प्रेम और करूणा का देश है
।आवश्यकता है, तो अपने संसाधनों को जुटाने और उचित मार्गदर्शन की, देवताओं की भूमि होने के कारण इस धरती में वह शक्ति है कि हर मिट्टी
की वस्तु भी मूल्यवान बन सकती है ।
तुम अपने आसपास के लोगों की एक
सूची बनाओ जो बेरोज़गार हैं,पर प्रतिभावान हैं । चाहे फिर वह
पापड़, सेव, मिट्टी के बर्तन, लकड़ी के बर्तन बनाने वाला ही क्यों ना हो । उनको काम करने के लिए , आत्मनिर्भर बनने के लिये प्रोत्साहित करें, उनके विश्वास को बढ़ाए , उनके द्वारा बनाए समान का स्वयं उपयोग
करें और दुसरों को भी उनके उपयोग हेतु प्रेरित करें । ऐसे ही एक कड़ी से कड़ी
जुड़ती जाए, एक प्रतिभा से दूसरी प्रतिभा का यह जोड़ देश के अन्यान्य लोगों
का मार्गदर्शन कर उन्हें सशक्त बना देगा । अभी हमें आयात और निर्यात दोनों
को छोड़कर कर गांव,
जिला, राज्य और देश के लोगों को स्वदेशी वस्तु निर्माण और स्वदेश में बनी
वस्तु के उपयोग हेतु जोड़ना है जिसे हर प्रतिभावान व्यक्ति की बनी वस्तु भारत का हर
एक नागरिक उपयोग में ले सके। अब समय ऐसा ही है और हमें यह करना ही होगा नहीं तो हम
अपनी संस्कृति, संस्कार ,अपना इतिहास ,अपनी धरोहर सब खो देंगे , सब नष्ट हो जाएगा । पारंपरिक
व्यापार आर्थिक सक्षमता के साथ हमें मौलिक तौर पर सशक्त करेगा । हमारी
आत्मशक्ति इतनी मजबूत हो जाएगी की हम हर शारीरिक और मानसिक रोग से लड़ने के लिए
मजबूत हो जाएंगे । यह जान लीजिए एक शिक्षित सोच से ही विचार शक्ति बदलती
है।आत्मनिर्भर बनने की राह सुगम तब हो जाती है जब हम प्रकृति संरक्षण के साथ अपनी
संस्कृति और संस्कार का सुरक्षाकवच पहनते हैं। गुरु आज्ञानुसार चलने से ही
आत्मशक्ति का संचार होता है ।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात (सातवां भाग)
18 मई 2020, उदयपुर
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