अंतरात्मा में यही सोचना चाहिए कि मुनियों की सेवा, दर्शन और आहार दान आदि कब दे पाऊंगा। संसार में धर्म नहीं, धर्मात्मा बडे़ है। पद्मपुराण पर्व 92 का प्रसंग आत्मचिंतन करने योग्य है-
शत्रुघ्न को पता चला कि अयोध्या में सप्तर्षि मुनि सुरमन्यु, श्रीमन्यु, श्रीनिचय,सर्वसुन्दर,जयवान,विनयललसा और जयमित्र आए और आहार कर वापस चले गए तो उन्हें बड़ा कष्ट हुआ कि मैं उनके दर्शन नहीं कर सका। शत्रुघ्न ने पता लगाया कि मुनिराज मधुरा की और विहार कर गए हैं तो शत्रुघ्न भी मुनियों के दर्शन के लिए सेना और परिवार के सदस्यों के साथ मधुरा की ओर निकल पड़े। मधुरा जाकर उन्होंने मुनियों के दर्शन किए और पारण करने की प्रार्थना की। उन मुनियों में, जो मुख्य थे, ने कहा-हे नर जो आहार मुनियों के निमित्त से बनता है, वह मुनि ग्रहण नहीं करते हैं। फिर शत्रुघ्न ने कहा, आपसे निवेदन है कि आप कुछ समय यहीं पर विराजमान रहिए जिससे प्रजा को आनंददायी सुभिक्ष की प्राप्ति हो सके। आपके आने पर यह चमरेन्द्र द्वारा नष्ट की गई नगरी पहले जैसी ही समृद्धि को प्राप्त हो गई है। वह चिन्ता करने लगे कि मैं विधिपूर्वक मुनियों के लिए उनके मनवांछित आहार कब दूंगा। यही भाव पुण्य का कारण है।
अनंत सागर
अंतर्भाव
11 जून 2021, शुक्रवार
भीलूड़ा (राज.)
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