17
Aug
मेरी जिंदगी के पहले गुरुदेव हैं। जब वह बेंगलुरु चातुर्मास के लिए आए थे, उससे पहले मैं किसी भी गुरु से इतना नहीं जुड़ा था। उनके चातुर्मास के दौरान मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा और मेरे मन में धर्म के प्रति सम्मान भी बहुत बढ़ गया। आज वह शारीरिक रूप से यहां से 2000 किलोमीटर दूर हैं लेकिन मुझे हर वक्त अपने नजदीक लगते हैं और हर वक्त प्रेरणा देते रहते हैं। उनकी वाणी सुनते ही मन में पुरसुकून की स्थिति आ जाती है और सारी नकारात्मकता गायब हो जाती है। मुझे लगता है कि अगर हर किसी को मेरे गुरु पूज्य सागर जी जैसा गुरु मिल जाए तो उसका जीवन ही सफल हो जाए।
प्रमोद – सिम्पल टोंगया
बेंगलुरु
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