रोगी दवाइयों का सेवन परहेज के साथ करता है तो रोग जल्दी ठीक हो जाता है। वही चालक दुर्घटना नहीं करता जो नियमों का पालन करते हुए गाड़ी चलाता है। वही वृक्ष फल देता है, जिसमें बराबर पानी, खाद आदि दिया जाए। कुछ ऐसा ही है अणुव्रतों को पालन करने का फल है ।
क्रमश:अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्य अणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत, परिमित परिग्रहाणुव्रत इन पांच अणुव्रत और इनके अतिचार का वर्णन पढ़कर आये हैं। इनका अतिचार रहित पालन करने वाला कभी भी दुःख को प्राप्त नहीं कर सकता है। अणुव्रत को धारण करने वाला नियम से देव गति में ही जन्म लेता है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में अणुव्रत का अतिचार रहित पालन करने का फल बताते हुए कहा है कि …
पञ्चाणुव्रतनिधयो, निरतिक्रमणाः फलन्ति सुरलोकं ।
यत्रावधिरष्टगुणा, दिव्यशरीरं च लभ्यन्ते ॥63॥
अर्थात- अतिचार रहित पाँच अणुव्रतरूपों निधियां स्वर्गलोक का फल/देती हैं, जिस स्वर्गलोक में अवधिज्ञान, अणिमा आदि आठ गुण/ऋद्धियाँ और सप्त धातुओं से रहित सुन्दर वैक्रियिक शरीर प्राप्त होते हैं।
अणुव्रत धारण करने वाले जीव बद्धायुष्क और अबद्धायुष्क की अपेक्षा दो प्रकार के हैं, जो अणुव्रत धारण करने के पहले आयु बाँध चुकते हैं। ये बद्धायुष्क कहलाते हैं और जो अणुव्रतों के काल में आयु बाँधते हैं वे अवद्धायुष्क कहलाते हैं। ये दोनों प्रकार के जीव नियम से देव ही होते हैं, क्योंकि ऐसा नियम है कि देवायु को छोड़कर जिस जीव को अन्य आयु का बन्ध हो जाता है, वह उस पर्याय में अणुव्रत तथा महाव्रत धारण नहीं कर सकता और अणुव्रत के काल में यदि आयु बन्ध होता है तो नियम से देवायु का ही बन्ध होता है। देवायु में भी वैमानिक देवायु का ही बन्ध होता है।
अणुव्रत धारण करने के पूर्व यदि किसी की मिथ्यादृष्टि अवस्था है तो उसमें भवनत्रिक की देवायु बंध सकती है, परन्तु अणुव्रत होने पर उसकी भवनत्रिक की आयु वैमानिक की आयु के रूप में परिवर्तित हो जावेगी। अणुव्रतों का धारी जीव सोलहवें स्वर्ग तक ही उत्पन्न हो सकता है। उसके आगे नहीं। उसके आगे नवग्रवेयक आदि में उत्पन्न होने के लिये निर्ग्रन्थ मुद्रा का धारण करना आवश्यक है ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 69 वां दिन)
गुरुवार, 10 मार्च 2022, घाटोल
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