चातुर्मास का समय पास आ गया है। समाज को संतों का मार्गदर्शन मिलेगा और संत अपनी साधना में भी लीन रहेंगे। यह समय श्रावक और संत दोनों के ही साधना करने का समय है। संकट के समय साधना और साधक ही समाज को कष्टों से बचा सकते हैं। चारों और एकही बात हो रही है कि कोरोना की तीसरी लहर आएगी। तो क्यों नहीं, हम इस चातुर्मास को जाप का चातुर्मास, ध्यान,साधन और स्वाध्याय का चातुर्मास बना लें। जैसे सरकार तीसरी लहर से लड़ने के लिए अभी से तैयारी कर रही है तो क्यों न समाज और संत भी अभी से कोरोना के प्रकोप से बचने के लिए पूरा चातुर्मास ध्यान,जाप आदि के लिए समर्पित कर दें। यह भी प्रण लें कि इस बार कोई बाहरी प्रभावन नहीं करेंगे। मात्र अंतरंग प्रभाव और आत्मचिन्तन में लगाएंगे। जो बाहरी प्रभावना में हर साल धर्म खर्च होता है, वह धर्म समाज में कोरोना से पीड़ित श्रावकों में खर्चकर अपने श्रावक धर्म के कर्तव्य को पूरा करेंगे। इस बार न बैनर, न पोस्टर, न बैंड, न बाजे, बस विधान, जाप, पूजन, ध्यान के माध्यम से प्रभुभक्ति का संकल्प हम करें। तो क्या आप सब यह करने को तैयार हैं? क्या हम अपनी अंतरंग आत्मशक्ति को बढ़ाने के लिए तैयार है? क्या हम यह सब कर पाएंगे? क्या हम अपने समाज के इतिहास को कायम रख पाएंगे? चातुर्मास की साधना का पर्व बना पाएंगे? एक बार करके तो देखें तो अवश्य ही अंतर्मन प्रसन्न होगा।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
21 जून 2021, सोमवार
भीलूड़ा (राज.)
Give a Reply