पद्मपुराण के पर्व 5 में शरीर और उसके अंगों को लेकर चिंतन है। इसका हमे भी चिंतन करना चाहिए ।
संसार के समस्त प्राणियों का शरीर रोगों से भरा हुआ है। यह शरीर अल्पकाल तक ही रहता है। कहने का अर्थ है कि जन्म-मरण के कारण नया शरीर मिलता रहता है। तीर्थंकरों और महापुरुषों की भक्ति-आराधना के पुण्य से शरीर निरोगी रहता है। शरीर का उपयोग धर्म-ध्यान में करना चाहिए।
जो तीर्थंकरों के उपदेश सुनते हैं वही कान हैं बाकी तो पागल व्यक्ति के कान के समान हैं। तीर्थंकरों का उपदेश जिनके मस्तिष्क में घूमता है वही मस्तिष्क है, बाकी तो नारियल के कड़े आवरण के समान है। जिह्वा वही है जो तीर्थंकरों के अमृत वचनों का स्वाद लेती हो, बाकी दुर्वचन को कहने वाले चाकू के समान है। श्रेष्ठ ओंठ भी वही हैं जो तीर्थंकर आदि के गुणगान करते हैं बाकी शम्बूक नामक जंतु के मुख से मुक्त जोंक के पृष्ठ के समान है। दांत वही हैं जो तीर्थंकरों की कथा से रंजित रहते हैं, बाकी कफ निकालने के द्वार ही है। मुख वही है जो तीर्थंकर आदि महापुरुषों के गुणगान करता है, बाकी मल से भरा और दांत रूपी कीड़ों से भरा गड्ढा है।
अर्थात जो मनुष्य कल्याणकारी वचन कहता है अथवा सुनता है वास्तव में वही मनुष्य है, बाकी तो शिल्पकार के द्वारा बना हुआ मनुष्य का पुतला ही है।
अनंत सागर
अंतर्भाव
तेतालीसवां भाग
19 फरवरी 2021, शुक्रवार, बांसवाड़ा
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