प्राणीमात्र की उत्पत्ति पंचतत्वों से बने शरीर और आत्मा के समन्वय के साथ होती है। इन दोनों का मेल ही देह को सजीवता प्रदान करता है। किंतु क्या आप इस बात से परिचित हैं कि कई बार इस ( पुद्गल परमाणु अर्थात् ) ‘पंचभूत से बनी देह’ और ‘आत्मा’ के मूलभूत स्वभाव में अंतर देखा गया है। चलिए इन्हें अलग कर के पुनः विचार करते हैं …..सबसे पहले यह जान लें पंचतत्वों का अपना प्राकृतिक स्वभाव होता है और आत्मा का अपना। जब हम इन्हें एक से दो करते हैं तो इनके विचार, भाव, भावना आदि में अंतर दिखाई देने लगता है….. कभी अंतर बढ़ जाए तो शरीर और उसमें निवास करने वाली आत्मा के बीच मन मुटाव भी हो जाता है। शनैः शनैः विचारों का टकराव अपना विस्तार करता जाता है। हम इसे एक उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं –
एक घर में पहले एक व्यक्ति रहता था वह अपनी स्वेच्छा से घर को सजाता, रखरखाव करता और अपनी पूर्ण स्वतंत्रता के साथ उसमें रहता था। कुछ समय बाद उस घर में एक और व्यक्ति आ गया। अब पहले वाले व्यक्ति की स्वतंत्रता चली गई अब वह अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर पा रहा था। कर भी लेता तो उसे अंदर ही अंदर डर रहने लगता, वह यह सोचने लगा न जाने दूसरे व्यक्ति को यह सब पसंद आएगा या नहीं। अब कर्म तो करता है किंतु अंदर ही अंदर डर पैर पसारता है। वह यह सोचने लगता है की मैं जो कर रहा हूं वह दूसरे को पसंद आएगा या नहीं। धीरे धीरे भाव, विचार और भावना में मेल ना बैठा तब क्लेश बढ़ने लगा और कषाय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। द्वेष का भाव उबाल लेने लगा। कुल मिलाकर जीवन अब अशांत हो गया। अब दोनों के मन में यह विचार आने लगा की कौन किसके हिसाब से चले ? कौन पहले घर छोड़ कर जाए ? दोनों का अहंकार झुकने की, सत्य स्वीकार करने की पहल नहीं करना चाहता था। दोनों का स्वभाव अलग अलग है। यह वह समझने को तैयार नहीं थे। यह रोज होने लगा प्रतिदिन तनाव बढ़ने ही लगा। फिर नकारात्मकता बढ़ी…. आत्माहत्या, मारने, नीचा दिखाने के भाव आने लगे। पर दोनों अपने अपने स्वभाव को समझने को तैयार नहीं थे। कुछ ऐसी ही दशा हम सबकी है, इस शरीर रूपी घर में।
आत्मा और पुद्गल परमाणु ( भंगुर देह ) मिल गए हैं। अतः आत्मा अलग है और पुद्गल परमाणु अलग हैं। फिर उनका स्वभाव अलग है। जब दोनों एक शरीर रूपी मकान में रहते हैं तो आत्मा और पुद्गल परमाणु के विचार और स्वभाव आपस में नहीं मिलते है। आत्मा का स्वभाव “चेतना” का है। पुद्गल परमाणु निर्जीव व नाशवान है। दोनों शरीर रूपी घर में एक साथ रहते हैं क्योंकि दोनों कर्म से बंधे हैं। इन दोनों के मिलने से कर्म का जन्म होता है। कर्म ही दोनों के बीच अशांति और क्लेश पैदा कर देता है, तनाव बढ़ाने लगता है और जीवन अशांत हो जाता है। आत्मा अपने स्वभाव को भूल जाती है और पुद्गल परमाणु के चक्कर में आकर सुख- दुख के साथ संसार में घुमाती रहती है। यह ध्यान रहे, कि यह जो घुमा रहा है वही “कर्म” है। आगे जरूरत पड़ी तो कर्म को और समझेंगे।
05
May
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