लोभ को कम करने के लिए परिमित परिग्रह व्रत होता है। व्रत के अनुसार मनुष्य नियम तो कर लेता है, पर लोभ के कारण उस व्रत में दोष लगाता है। जैसे- किसी ने नियम किया कि मैं एक बैल रखूंगा पर उस एक बैल से दो बैलों का काम कर रहा है। नियम किया कि एक खेत रखूंगा और पास का एक खेत और खरीद लिया और बीच की बाड़ सीमा को हटा दिया तो दो खेत का एक खेत हो गया, पर सीमा-क्षेत्रफल बढ़ गया ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में परिमित परिग्रह अणुव्रत के अतिचार का स्वरूप बताते हुए कहा है कि …
अतिवाहनातिसंग्रह विस्मयलोभातिभारवहनानि ।
परिमितपरिग्रहस्य च विक्षेपाः पञ्च लक्ष्यन्ते ॥ 62 ॥
अर्थात – अतिवाहन, अतिसंग्रह, अतिविस्मय, अतिलोभ और अतिभारवहन ये पाँच परिग्रह परिमाण अणुव्रत के अतिचार निश्चित किए जाते हैं।
बैल आदि पशु जितने मार्ग को सुख से पार कर सकते हैं, उससे अधिक मार्ग पर उन्हें चलाता है तो उसकी यह क्रिया अतिवाहन कहलाती है।
इस व्रत के धारी किसी मनुष्य ने बैल आदि की संख्या तो कम कर ली, परन्तु उनकी संख्या के अनुपात से खेती तथा मार्ग का यातायात कम नहीं किया, इसलिये उन कम किये हुए बैल आदि को ही अधिक चलाकर अपना काम पूरा करता है। ऐसी स्थिति में अतिवाहन नाम का अतिचार होता है।
अतिसंग्रह “यह धान्यादिक आगे चलकर अधिक लाभ देगा” इस लोभ के वश में कोई उसका अत्यधिक संग्रह करता है। उसका यह कार्य अतिसंग्रह नाम का अतिचार है।
अति विस्मय-संगृहीत वस्तु को वर्तमान भाव से बेच देने पर किसी का मूल भी वसूल नहीं हुआ और दूसरे के द्वारा ठहरकर बेचने पर उसे अधिक लाभ हुआ, इस स्थिति में लोभ के आवेश से अतिविस्मय अतिखेद करता है। यह अतिविस्मय नाम का अतिचार है।
अतिलोभ-विशिष्टलाभ मिलने पर भी और भी अधिक लाभ की इच्छा से कोई लोभ करता है तो उसका वह अतिलोभ नाम का अतिचार है।
अतिभारवहन-लोभ के आवेश से अधिक भार लादना अतिभारवहन नाम का अतिचार है।
इस व्रत की रक्षा के लिये उमास्वामी महाराज ने निम्नलिखित पाँच भावनाएँ लिखी हैं
मनोज्ञामनोज्ञेन्द्रियविषयरागद्वेषवर्जनानि पञ्च॥ त. सू.॥ स्पर्शनादि पाँच इन्द्रियों के मनोज्ञ और अमनोज्ञ विषय में रागद्वेष नहीं करना परिग्रहत्याग व्रत की पाँच भावनाएँ हैं ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 68 वां दिन)
बुधवार, 9 मार्च 2022, घाटोल
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