मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 37वां दिन। बदले की आग में व्यक्ति हैवान बन जाता है और स्वर्ग जैसा घर भी जंगल बन जाता है। लोग एक- दूसरे के शत्रु बने रहते हैं। घरों में रहने वाला व्यक्ति खुद को हैवान बना लेता है। व्यक्ति को सोचना चाहिए कि ऐसा करने से क्या उसके दु:ख और कष्ट दूर हो जाएंगे? व्यक्ति को यह सोचना चाहिए कि आखिर वह बदला किससे ले रहा है? वह जो भोग रहा है वह तो उसी की कमाई का है जो उसने अपने मन, वचन और काय (शरीर) के निमित्त कमाए हैं। व्यक्ति खुद के दु:ख और कष्ट का कारण दूसरे व्यक्ति को मानकर उससे बदला लेने के लिए खुद को अशुभ कार्य में लगा लेता है। दूसरों से बदलना लेने के बजाए व्यक्ति को खुद को बदलने का संकल्प करना चाहिए, तभी वह हैवान और हैवानियत जैसी मानसिकता से बच सकता है। ऐसा करके व्यक्ति अपनी इंसानियत को बचाए रख सकता है। दूसरों को बदलने की कोशिश में व्यक्ति खुद को इस तरह बदल लेता है कि कुछ समय बाद वह खुद को भी पहचान नहीं पाता।
व्यक्ति अपनी सोच को इस स्तर तक गिरा देता है कि इंसानियत के लिए कोई जगह ही नहीं बचती। यदि इस दुनिया में शान और सिर उठाकर जीना है, सब का प्यार चाहिए है तो व्यक्ति में इंसानियत का होना बहुत जरूरी है। दूसरे से प्रेम और स्नेह इंसानियत से ही मिलता है। बाकी तो सब डर और स्वार्थ से मिला प्रेम होता है जो कभी भी तुम्हें भीतर से स्वीकार नहीं करेगा।
बदले की आग की जगह उस व्यक्ति को अपना हितेषी और मित्र समझो और विचार करो कि इसके कारण ही आज मेरा दु:ख कम हुआ। व्यक्ति का उपकार मानना चाहिए कि उसके कारण जीवन से एक पाप कम हुआ। यही भावना सभी को तुम्हारा मित्र बना देगी। जिस दिन संसार के सारे जीवों के प्रति तुम्हारे भीतर मैत्री का भाव आ जाएगा, उसी वक्त तुम खुद को परमात्मा के करीब महसूस करोगे।
शुक्रवार, 10 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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