आहार दान का प्रभाव तो आप सब ने सुना ही होगा, पर आचार्य रविषेण द्वारा रचित पद्मपुराण पर्व 14 में एक ऐसा भी प्रसंग आया है। एक श्रावक सहस्त्रभट मुनिवेलाव्रत था अर्थात मुनि के आहार के समय को ढालकर भोजन करता था।
जो मनुष्य भक्ति पूर्वक मुनिवेलाव्रत का पालन करता है, अर्थात मुनि के आहार के समय को ढाल कर भोजन करता है, वह स्वर्ग में देव होता है, जहां पर अन्य देव भी उसे सुख देते हैं। वहां पर मन-चाहा फल भोगते हैं। जिस प्रकार वट-वृक्ष का छोटा सा बीज आगे चलकर ऊंचा वृक्ष होता हो जाता है, उसी प्रकार छोटा था तप, व्रत भी आगे चलकर महाभोग रूपी फल को देने वाला होता है।
एक सहस्त्रभट नाम का पुरुष मुनिवेलाव्रत था, जिसके कारण वह मुनि की आहार-चर्या का समय निकलने के बाद ही भोजन करता था। इस व्रत के प्रभाव से एक दिन नगर में आए मुनि को नवधा-भक्ति के पड़गाहन कर मुनि को आहार दान दिया, जिसके प्रभाव से मुनि के आहार होने के बाद उसके घर में रत्नवृष्टि हुई।
अपनी आयु पूर्ण कर सहस्त्रभट मर कर अन्य भव में कुबेरकान्त सेठ हुआ, जो कि भूमि पर प्रसिद्ध, पराक्रमी, धन-धान्य सहित था, जिसकी अनेक सेवक सेवा करते थे। ऐसा श्रेष्ठ श्रावक हुआ। पूर्व भव के पूण्य से वैराग्य हुआ और मुनि दीक्षा धारण की। यह प्रसंग हमारे श्रावक धर्म को मजबूत करता है। इस श्रावक धर्म के महत्व को समझकर आप भी इस व्रत का पालन करें और नगर में मुनि आए हैं तो आहार दान देकर ही भोजन करें।
अनंतसागर
श्रावक
उनचालीसवां भाग
27 जनवरी 2021, बुधवार, बांसवाड़ा
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