मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 43वां दिन। मां-बाप अपने बच्चे का नाम, व्यापारी अपनी दुकान का नाम और सरकारें अपनी योजनाओं का नाम रावण के नाम पर क्यों नहीं रखतीं। रावण ने सीता का हरण किया, इसलिए उसका नाम नहीं रखते हैं। तो फिर समझ में यह बात नहीं आ रही है कि कतिपय लोग वर्तमान में सीता जैसी कितनी मां और बहनों का, भारतीय संस्कृति का, इंसानियत का, धर्म और धर्मात्माओं का हरण कर रहे हैं, इनकी भावना से खेल रहे हैं और इतिहास तक को नष्ट कर रहे हैं, आज जिसे हम अपना प्रतिनिधि चुनते हैं, वह कहीं न कहीं अपराधों में लिप्त है। वह बच्चे जो अपने मां-बाप को घर से निकाल देते हैं, वह व्यापारी जो जनता के साथ धोखा करते हैं, जो धर्म के नाम पर मनुष्य को भटकाते हैं, धर्म के नाम पर अपने स्वार्थ सिद्ध कर रहे हैं, ऐसा करने वाले भी रावण से कम नहीं होते हैं। ऐसे काम तो रावण के काम जैसे ही हैं। केवल नाम में अंतर है। उनके जीवन की दशा भी रावण जैसी ही होना तय है।
भारतीय संस्कृति में तो नाम का नहीं, गुणों का सम्मान किया गया है और उसी के अनुसार उसका भविष्य तय होता है। फिर भी इनका सब सम्मान कर रहे हैं। चाहे वह डर से हो या स्वार्थ से ही क्यों नहीं। रावण ने तो एक ही सीता का हरण किया था और उसके नाम की दुर्दशा हो गई। लेकिन सोचने की बात यह है कि मन, विचार और क्रिया से दूसरों के प्रति कितनी दुर्भावना की जाती है। हरेक क्षण व्यक्ति का मन, विचार और क्रिया बदल रही है। तो फिर ऐसे व्यक्ति की दुर्दशा भी होना तय है। यदि तुम्हारे साथ किसी ने गलत किया, डर और भय से तुम उसके सामने कुछ नहीं कहोगे लेकिन तुम्हारे मन और मस्तिष्क में उसकी छवि रावण से कम नहीं बनेगी। रावण के नाम से नफरत करने के बजाए यदि व्यक्ति अपने भीतर के रावण को बाहर निकाल दे तो उसका जीवन सुधर जाएगा।
गुरुवार, 16 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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