पद्मपुराण के पर्व 80 पर राम से प्रेरणा लेने वाला एक प्रसंग आया है । यह प्रसंग इस बात का ज्ञान करवाता है कि मनुष्य कितना भी शक्तिशाली और सम्मान को प्राप्त हो जाए पर उसे अपने व्यवहार और पद की गरिमा रखना चाहिए ।
रावण के वध के बाद विभीषण और उसकी पत्नी विदग्धा राम के पास आए और भक्ति ,विनय से कहा कि आप हमारे घर चलें और अपने चरण रज से उसे पवित्र करें । राम, लक्ष्मण, सीता और अन्य सभी अनुयायी विभीषण के हाथी, रथ आदि पर सवार होकर उसके घर की ओर चलने लगे। रास्ते को नाना प्रकार के फूलों, रंगोली आदि से सजाया गया था। रास्ते में भेरी, मृदङ्ग, दुन्दुभि आदि अनेक प्रकार के वाद्य बज रहे थे। आगे नर्तकियां नृत्य कर रही थीं।
इस प्रकार की शोभा के साथ सभी विभीषण के घर पहुंचे। घर में पहुंचकर सभी वहां स्थित पद्मप्रभ भगवान के मंदिर में अपने योग्य स्थान पर बैठे और राम, लक्ष्मण, सीता ने योग्य मंगल स्नान कर भगवान पद्मप्रभ की वंदना की । वंदना के बाद छः रसों से युक्त भोजन राम और अन्य को को करवाया गया। इस समय सभी विद्याधरों ने विभीषण की तारीफ की । विभीषण आदि विद्याधरों ने राम से कहा आप को बलदेव पद और लक्ष्मण को चक्ररत्न प्राप्त हुआ है, इसलिए हम आप का अभिषेक करना चाहते हैं। अभिषेक से तात्पर्य राज्यभिषेक से था । राम ने कहा कि पिता दशरथ से जिसे राज्याभिषेक प्राप्त हुआ है ऐसा राजा भरत ही मेरा और आप सब का स्वामी है।
राम का यही उत्तर प्रेरणा लेने वाला है कि उन्होंने कभी अपने आप को बड़ा नही माना। पिता की गरिमा को बनाए रखा, उनके निर्णय को मान कर ही कोसों दूर रहने के बाद भी अपना राज्य अभिषेक करने को मना किया। यह शिक्षा सब को लेनी चाहिए कि पुण्य के प्रभाव में अहंकार नहीं अपने कर्तव्य को याद रखने वाला ही महापुरुष कहलाता है।
अनंत सागर
प्रेरणा
6 मई 2021
भीलूड़ा (राज.)
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