बच्चों आप कैसे हो? ठीक हो ना…… आज हम बात करेंगे मंत्र जाप की। जैन धर्म में तीर्थंकरों की दिव्य ध्वनि में अनेक मंत्रो के बारे के बताया गया है। हर मंत्र किसी ना किसी रोग, शोक, दुख और धर्म प्रभावना में काम आता है। हम उसी निमित्ति जाप करते हैं, पर कई बार ऐसा भी होता है कि जाप का फल नही मिलता। ऐसे में हमारी जाप के प्रति श्रद्धा कम हो जाती है। फिर हम कहते हैं कि मैंने कई बार जाप किया पर उसका फल नही मिला। पर बच्चों…. सच्चाई कुछ और है। जाप करने के लिए मन, वचन और काय का शुद्ध और पवित्र होना आवश्यक है तभी शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और आगन्तुक आदि दुःख दूर होते हैं। हम जब जाप करते है तो हो सकता है कि मन, वचन, काय शुद्ध नही हो। ऐसे में जाप का फल नहीं मिलता है और हो सकता है कि मिले तो भी उल्टा मिल जाए।
बच्चों….. एक प्राचीन सच्ची घटना है…. सुनो… आचार्य पुष्पदन्त और आचार्य भूतबलि तो मुनिराज थे। उन दोनों को परीक्षा की दृष्टि से आचार्य धरसेन जी ने दोनो को एक-एक मंत्र दिया। दोनों ने मंत्र का जाप शुरू किया तो दोनो के सामने एक-एक देवी आई। एक के सामने एक आंख वाली देवी आई तो दूसरे के सामने लम्बे दांत वाली देवी आई। दोनों मुनिराज समझ गए कि जाप में कोई गलती है। जब उन्होंने व्याकरण की दृष्टि से देखा तो एक मुनिराज के पास जाप में एक अक्षर कम था तो दूसरे मुनिराज के पास जाप में एक अक्षर ज्यादा था। दोनो में मंत्र ठीक किया और जाप करने लगे तो दोनो के सामने सुंदर देवियां आ गईं। तो देखा जाप की शुद्धता नही होने से क्या हुआ।
अब ध्यान रखना जाप पर अश्रद्धा नही करनी है, क्योंकि तीर्थंकर की वाणी में खिरी बात गलत नही हो सकती है। जाप और उसके फल की बात शास्त्रों में बिल्कुल सही है, पर हमारे करने में कुछ गलती रह जाती है, इसलिए जाप का फल नही मिलता।
अनंत सागर
पाठशाला
(तीसवां भाग)
21 नवम्बर 2020, शनिवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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