मुनि पूज्य सागर की डायरी से
मौन साधना का 30वां दिन। चाकू से मार का घाव समय के अनुसार भर जाता है, पर शब्दों की मार का घाव जन्मों- जन्मों तक नहीं भर पाता है। इंसान शब्दों के उच्चारण से इस संसार को अपना बना लेता है। जहां- जहां पर एक दूसरे के प्रति मित्रता आदि दिख रही है, वह सब शब्दों के कारण ही है। शब्द पुद्गल का पर्याय है। पुद्गल वर्गणाओं से ही कर्मबन्ध होता है। मर्यादित शब्द से जीवन में प्रेम, वात्सल्य,अनुशासन आदि आता है, जो खुशी जीवन का कारण बनता है। मर्यादित शब्द एक दूसरे के प्रति जिम्मेदारी का अहसास करवाते हैं। इंसान का यही गुण उसके जीवन में पुण्यकर्म करवाता है। अमर्यादित शब्दों के इस्तेमाल से द्वेष,ईर्ष्या, मर्यादाहीन जीवन हो जाता है हम एक दूसरे की जिम्मेदारी को भी नहीं समझ पाते हैं। मैंने कई बार इन सब बातों का अहसास किया है कि शब्दों के उच्चारण से सत्य भी असत्य और असत्य भी सत्य समझा जाता है। हमसे कोई दो शब्द मीठे बोल ले, तो हम उसे अपना मान लेते हैं। उसे अपनी कमजोरी बता देते हैं।
एक बात और, दुनिया में कोई भी एक दूसरे की तरफ देखकर किसी को अपना नहीं बताता। उसके शब्दों से अपना बनता है। शब्द मार्केटिंग करता है। हम कितना अच्छा और सकारात्मक बोलते हैं, उसी से जीवन का मूल्यांकन किया जाता है और यही आपकी पहचान बनाता है। आमतौर हम देखते हैं कि इंसान को अगर कोई गिफ्ट देते हैं तो वह खुश हो जाता है, पर शब्दों का जाल ऐसा गिफ्ट है कि बिना कुछ गिफ्ट दिए ही इंसान इतना खुश होता है जितनी खुशी उसे गिफ्ट मिलने पर भी नहीं होती।
गुलाब जामुन स्वादिष्ट होता है, पर यह कहा जाए कि यह खा लें तो भी यह गुलाब जामुन ही रहेगा। गुलाब जामुन स्वादिष्ट नहीं भी हो, पर यह कहा जाए कि यह तुम्हारे लिए ही बड़े मन से बनाए हैं, तुम खा लो। तो बताओ, किसमें अधिक खुशी मिलेगी? शब्दों के उच्चारण से पत्थर की मूर्ति भगवान और एक गृहस्थ संत बन जाता है। बस, इन शब्दों को मंत्र नाम दे दिया जाता है। बस, सकारात्मक सोच के साथ किन शब्दों का कहां प्रयोग करना चाहिए और कब , कितना करना चाहिए, इतना ज्ञान ही हमें सुख, शांति और समृद्धि से भर देता है। साथ ही शब्दों के उच्चारण से ही एक दूसरे के प्रति प्रेम, वात्सल्य,दया, करुणा, ममता आदि के भाव बनते हैं।
शुक्रवार, 3 सितम्बर, 2021 भीलूड़ा
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