कभी किसी को कमजोर समझकर पीड़ा, कष्ट नहीं देनी चाहिए। चाहे वह कमजोर हो पर कर्म बलवान होते हैं वह किसी को नहीं छोड़ते हैं, इसलिए प्राणी मात्र के प्रति दया, करुणा सहयोग का भाव रखना चाहिए। वर्तमान में जो कोरोना बीमारी चल रही उसका भी कारण कहीं यह तो नहीं?
पद्मपुराण के पर्व 64 में एक प्रसंग आया है जो कर्मसिद्धांत के साथ कोरोना रोग के कारण को दर्शाता है कि यह रोग भी किसी सामूहिक पाप कर्म के उदय से ही आया है।
विंध्या नाम का एक व्यापारी गधे, ऊंट, भैंसा पर नाना प्रकार की वस्तुओं को लादकर व्यापार करने अयोध्या नगर आया था। वह यहां ग्यारह महीने तक रहा। इस बीच उसका भैंसा बीमार हो गया उसके शरीर पर घाव हो गए। भूख, प्यास से शरीर कमजोर हो गया। इसके साथ ही अनेक और भी रोग हो गए। वह इसी हालत में मार्ग के बीच कीचड़ में पड़ा रहता। लोग उसे मारते थे और वह गोबर से लथपथ होकर पड़ा रहता था। सब लोग उसके सिर पर पैर रखकर जाते थे। इतने दुःख सहते हुए वह अकाम निर्जरा से मरण को प्राप्त हुआ और भवनवासी देव में वायुकुमार का देव बन गया। वायुकुमार देव होते ही उसने अवधिज्ञान से अपने पूर्व भव को जाना उसे स्मरण आया कि मैं भैंसा था और लोगो ने मेरे साथ ऐसा किया। तब उसने बदला लेने की भाव से वायु को दूषित कर ऐसी वायु चलाई की लोगों के शरीर में दर्द होने लगा। मुंह से लार बहने लगी। पूरे शरीर में पीड़ा होने लगी। भोजन का स्वाद खत्म हो गया। उल्टी होने लगी। शरीर पर सूजन आने लगी। फोड़े होने लगे। यह पीड़ा पूरे नगर में हो गई। इस रोग से मात्र द्रोणमेघ पीड़ित नहीं था क्योंकि उसके घर में विशल्या का जन्म हुआ था। फिर भरत राजा ने विशल्या के स्नान के जल से सभी देशवासियों के रोग को दूर करवाया।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
सैतालीसवां भाग
23 मार्च 2021, मंगलवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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