आचार्य श्री शांतिसागर महाराज ने सम्यक्त्व के बारे में कहा था कि शुद्ध आत्मा का खरा अनुभव सम्यक्त्व है। आचार्य श्री ने कहा था कि अगर आप सम्यक्त्व समझ नहीं पाते तो व्रत धारण कर देवगति में जाना चाहिए। वहां से विदेह में तीर्थंकर भगवान के पास जाना चाहिए। वहां उनकी दिव्यध्वनि से सारा तत्वज्ञान हो जाएगा। आचार्य श्री ने कहा था कि हमें विश्वास है कि सम्यक्त्व की महिमा इतनी अधिक है कि उससे मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है। आगम की रुचि सम्यक्त्व है। जब आत्मा ही नहीं मालूम है, तब किस पर श्रद्धा करोगे? भगवान तो देखे नहीं, फिर किस पर श्रद्धा करोगे? वस्तु आपको मालूम नहीं है। अरे, आत्मा और भगवान दो नहीं, एक ही हैं। इसे देखा, तो उसे देखा अक्षर में सम्यक्त्व नहीं है। आज भगवान के दर्शन नहीं हैं, श्रुतकेवली नहीं हैं, आत्म कल्याण का क्या मार्ग होगा? इस बात का स्पष्टीकरण करते हुए आचार्य श्री ने कहा था कि भगवान की वाणी की शरण लो। उनकी वाणी में बड़ी शक्ति है। उसके अनुसार काम करो। जो इच्छा होगी, वह पूरी होगी। यह हम विश्वास के साथ दृढ़तापूर्वक कहते हैं। मार्ग से चलो तो मोक्ष सरल है।
17
Jun
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