आगम का एक-एक शब्द कल्याणकारी
दुनिया में गवाही उसी की मान्य है, जो स्वयं विवादों से रहित है। विश्वास योग्य है और सत्य का पक्षधर है। उन्हीं के वचनों पर विश्वास किया जा सकता है, जिन्होंने कभी असत्य नहीं बोला है, क्योंकि सत्य कभी घटता या बढ़ता नहीं, सत्य हमेशा सत्य रहता है। अगर वह घटे या बढे़ तो वह सत्य नहीं रहता।
किसी पुस्तक में लिखी बात का विश्वास हम तभी करते हैं, जब उस पुस्तक के रचनाकार पर हमारा विश्वास होता है। विवादित तथ्यों की पुस्तक कभी सर्वमान्य नहीं हो सकती है। इसी प्रकार किसी विद्वान की मृत्यु के उपरांत अगर उनका शिष्य अपने गुरू की बातों के आधार पर कोई बात कहे, तो उस विश्वास किया जा सकता है, क्योंकि उसका मूल स्रोत वह विद्वान हैं, जिन्होंने तथ्यों और समय की कसौटी पर कसकर प्रमाणिक बात कही है। बस कुछ इसी तरह है, हमारे आगम शास्त्र। उसके मूलकर्ता तो तीर्थंकर भगवान हैं, लेकिन उत्तर कर्ता गणधर, आचार्य हैं। यही कारण है कि आचार्यों द्वारा लिखे शास्त्र को ही हम आगम मानते हैं। वह हमारे ज्ञान से परे ही क्यों न हो पर उसमें हमारी श्रद्धा है, क्योंकि यह शास्त्र हिंसा और विवादों से रहित हैं और जन-जन का कल्याण करने वाले हैं। मानव मात्र को सही राह दिखाने वाले हैं।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में शास्त्र का स्वरूप बताते हुए कहा है कि –
आप्तोपज्ञ मनुल्लङ्घ्य मदृष्टेष्ट विरोधकं ।
तत्त्वोपदेशकृत्सार्व, शास्त्रं कापथ घट्टनं ॥9॥
अर्थात – तीर्थंकर भगवान् के द्वारा कहा गया, अनउल्लंघन से रहित अर्थात् वादी-प्रतिवादी से अजेय, प्रत्यक्ष और अनुमानादि के विरोध से रहित, तत्व का उपदेश करने वाला सबका हितकारी और मिथ्यामार्ग का खण्डन करने वाला शास्त्र है अर्थात् उसे शास्त्र कहते हैं।
वास्तव में इस प्रकार के शास्त्र ही मान्य होने चाहिए, जो निर्विवाद और तार्किक हैं। जिनका एक-एक शब्द सर्व कल्याण की भावना प्रकट करता है। जैन धर्म के शास्त्र इस कसौटी पर खरे हैं, दुनियाभर में इन शास्त्रों को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं है। ना ही किसी व्यक्ति ने इनकी निंदा की है। निंदा केवल अवगुणों की होनी चाहिए, व्यक्ति की नहीं। किसी व्यक्ति ने पाप किया है तो पाप करने वाले व्यक्ति से घृणा नहीं करनी चाहिए, बल्कि उसके द्वारा किए गए कार्य से घृणा होनी चाहिए। प्राचीन समय में जैन श्रावक की गवाही का बड़ा महत्व था, क्योंकि वह तीर्थंकर को मानने वाला है और असत्य नहीं बोल सकता है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम आगम के मार्ग पर चलकर अपनी विश्वसनीयता को निरंतर मजबूत बनाएं।
अनंत सागर
श्रावकाचार (नवां दिन)
रविवार , 9 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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