शोक संदेश
प्रियश्री संजय एवं अरूणजी
आपके पिताजी श्री चैनरूप जी बाकलीवाल के देवलोकगमन का समाचार सुनकर गहरा दुःख हुआ।
संसार में जिसका जन्म हुआ है, उसका जाना भी निश्चित है, लेकिन चैनरूप जी जैसे धार्मिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक व्यक्तित्व का चला जाना समाज और हम सबके लिए अपूरणीय क्षति है। मैं व्यक्तिशः उन्हें करीब 22 वर्षों से जानता था और उनका मुझे पिता तुल्य स्नेह प्राप्त हुआ। मैंने सदैव उन्हें एक सच्चे श्रावक तथा आदर्श व्यक्तित्व में रूप में पाया। वे समाज के मजबूत स्तम्भ थे और देव, शास्त्र एवं गुरू के प्रति अटूट श्रद्धा रखते। उन्होंने महासभा एवं शांतिवीर नगर के माध्यम से समाज सेवा एवं अध्यात्म के क्षेत्र में समर्पण भाव से कार्य किया।
यह उल्लेख करते हुए गर्व की अनुभूति है कि मुझे मात्र 19 वर्ष की उम्र में ऐसे व्यक्तित्व का सान्निध्य मिला। उन्होंने पिता की तरह मेरा ख्याल रखा। धर्म और समाज की बातों को समझाया। आचार्य श्री वर्धमान सागर जी के संघ में रहने की प्रेरणा दी। आपके मार्गदर्शन से मुझे आध्यात्मिक जीवन में आगे बढ़ने की दिशा प्राप्त हुई।
प्रिय संजयजी एवं अरूणजी पिता की कमी को कोई पूरा नहीं कर सकता, लेकिन आप उनके बताए मार्ग पर चलकर सच्चे श्रावक की परम्परा को आगे बढ़ाएं, यही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी। आपके किए सद्कार्यों से उनकी स्मृति एवं ख्याति इस जगत में सदैव चिरस्थायी बनी रहेगी। उन्होंने सदैव धर्म के मार्ग पर चलते हुए सामाजिक सरोकारों और अपने उत्तरदायित्वों का सम्यक सोच के साथ निर्वहन किया। वह समाज और श्रावकों के लिए अनुकरणीय है। वे भले ही शारीरिक रूप से इस संसार से चले गए हों, लेकिन उनके सद्कर्मों और परोपकार से वे सदैव हमारी स्मृतियों में जीवंत रहेंगे।
मैं परमपिता परमेश्वर से दिवंगत की आत्मा की शांति और सभी परिजनों को यह आघात सहन करने की शक्ति प्रदान करने के लिए प्रार्थना करता हूं।
अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर महाराज
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