आज हमें यह विचार करने की आवश्यकता है कि हम प्रतिदिन जो कार्य कर रहे है क्या वे हमें ऊंचाइयों तक ले जाने वाले है या कुछ ऐसे भी कर्म हम करते हैं जो हमें नीचे की और ले जाते हैं। इस बात का ज्ञान होना जरूरी है। तभी हम अपने जीवन की चर्या में परिवर्तन कर सकते हैं। हमने हजारों अशुभ कर्म किये हों पर एक शुभ कर्म भी हमारे जीवन को अमर बना सकता है और हजारों शुभ कर्म किए हों पर एक अशुभ कर्म जीवन को तहस नहस कर सकता है। एक अशुभ कर्म भव के दुख का कारण बन जाता है तो एक शुभ कर्म भव के सुख और मोक्ष का कारण बन जाता है।
वाल्मीकि जिन्होंने रामायण की रचना की उनका नाम रत्नाकर था। वह डाकू थे और जंगल से आने जाने वालों को लूटते थे और अपना जीवन यापन करते थे। एक दिन नारद उस रास्ते से निकले और उन्होंने रत्नाकर से कहा कि तुम जो यह चोरी का काम कर रहे हो, क्या इस पाप कर्म के फल तुम्हारा परिवार भी भोगेगा ? नारद के कहने पर रत्नाकर (वाल्मीकि) घर गया और परिवार से पूछा कि क्या मेरे चोरी वाले पाप कर्म का फल तुम भी भोगोगे, तो परिवार के सदस्यों ने कहा चोरी तुम कर रहे तो उसका पाप भी तुम ही भोगो, हम क्यों भोगें। यह सुन कर रत्नाकर का परिवार से मोह भंग हो गया। उसने जंगल मे जाकर नारद को पूरी घटना बता दी और कहा इस जंजाल से निकलने का रास्ता बताओ। नारद ने कहा बस तुम राम का नाम जपो। राम का नाम जपते रहे रत्नाकर की इस साधना से ब्रह्मा जी प्रसन्न हुए और उनका नाम वाल्मीकि कर दिया।
तो देखा आपने एक डाकू जिसने हमेशा लोगों को लूटा उसने बस एक शुभ काम किया कि वह राम का नाम जपने लगा। बस इसी ने उसे महात्मा बना दिया और उसका नाम इतिहास के पन्नो में अजर-अमर हो गया । उधर रावण था जिसने जीवन भर धर्म किया और मात्र सीता का हरण कर अशुभ कर्म का बंध कर लिया और अंत समय में स्वर्ण की लंका, बुद्धि, शक्ति भी उसे अपयश, अपमान और दूर गति में जाने से नही बचा सकी।
यही है कर्म सिद्धांत। इसलिए जीवन में शुभ और अशुभ कर्म का हिसाब रखो और एक- एक कर अशुभ कर्म को त्याग करते जाओ, अन्यथा एक अशुभ कर्म या कार्य आपके जीवन को तहस नहस कर देगा। हम आज देख भी रहे हैं कि कैसे कैसे दुखो से मनुष्य दुखी है।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
(तीसवां भाग)
24 नवम्बर, 2020, मंगलवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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