वर्तमान स्थिति को देखकर लगता है कि आने वाले समय में जैन धर्म इतने भागों में बंट जाएगा कि हमारी आने वाली पीढी हमारे देव, शास्त्र और गुरु को नही पहचान पाएगी और ना ही उनसे जुड़ पाएगी। वर्तमान में इसका प्रभाव दिखाई भी दे रहा है। आज हम देख रहे हैं कि हर रोज एक नया एक विवाद सामने आ रहा है। जब तक वह शांत होता है तब तक फिर एक नया विवाद सामने आ जाता है। देश के किसी भी कोने में विवाद हुआ हो पर सोशल मीडिया के माध्यम से वह विवाद इतना फैल जाता है कि उस विवाद की लपटें गांव-गांव तक पहुंच जाती हैं। जहां वह विवाद हुआ और जिनके बीच हुआ उन दोनों को हम नहीं जानते पर हम उसकी चर्चा कर एक पक्ष को सही तो दूसरे गलत बताने में जुट जाते हैं जब कि हम जिस धर्म को मानते है वह अनेकांत और स्याद्वाद की बात करता है, तो फिर क्यों हम इन विवादों को खत्म करने के बजाए बढ़ाने में लगे हैं। अब तो यह हो रहा है कि विवादों को बढ़वा देने और सही बताने के लिए शास्त्रों तक का सहारा लिया जा रहा है। शास्त्रों की गाथाओं का आधार लेकर विवाद को बढ़ावा देने वाले क्या शास्त्र की सम्पूर्ण बात मान रहे है? जैन धर्म का एक भी शास्त्र यह नही कहता कि विवाद को बढ़ाओ बल्कि शास्त्र का हर शब्द विवाद को खत्म करने की बात करता है।
शास्त्र में जीव को मूर्ति और अमूर्तिक बता दिया, दोनों को सिद्ध भी किया कि कैसे मूर्ति होगा कैसे अमूर्तिक होगा। तो क्या हम भी शास्त्रों का आधार लेकर विवाद को खत्म करने की बात नही कर सकते हैं? क्यों विवादों की आग में घी डाल कर विवादों की अग्नि को जला रहे है? क्यों हम अपने अनुयायियों में कषाय, राग-द्वेष भर रहे हैं। एक बात हमेशा ध्यान रखना धर्म और उनके शास्त्र विवाद को खत्म करने के लिए हैं न कि बढाने के लिए, तो फिर क्यों धर्म और शास्त्रों के आधार पर विवाद कर रहे हैं? जो शास्त्र और धर्म विवाद बढ़ाए वह न तो शास्त्र सच्चा होता है और न ही धर्म सच्चा हो सकता है। जो इन शास्त्रों और धर्म का आधार लेकर विवाद को बढ़ावा दे रहे हैं वह सच्चे श्रावक हो ही नही हो सकते।
अनंत सागर
अंतर्मुखी के दिल की बात
(पैंतीसवां भाग)
30 नवम्बर, 2020, सोमवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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