जन्म से शरीर, चेहरा सुंदर नही हो तो कई प्रकार के क्रीम, पाउडर लगाकर सुंदर करते हैं। आवाज मधुर नहीं हो तो मुलेठी, इलाइची खाकर आवाज सुंदर करते हैं। पर क्या यह सब दवाई आदि से सम्भव है? यह सम्भव होता तो दुनिया के सारे काले चेहरे वाले गोरे और दुःस्वर वाले सुस्वर वाले हो जाते। सही बात तो यह है कि क्रीम आदि से शरीर को सुंदर करने वालों को बिना मेकअप के देख लो तो उनकी हकीकत का पता चल जाता है।
जैन धर्म में कर्मो की बात कही है। उसमें नामकर्म के 93 भेद बताते हैं जो शरीर से सम्बंधित हैं। 93 नामकर्म में जो शुभनाम के भेद हैं उससे शरीर, चेहरा, सुंदरता, मधुर आवाज आदि मिलते हैं और अशुभ नाम कर्म से अशुभ शरीर और दुःस्वर मिलता है। क्रीम आदि निमित्त मात्र हो सकते हैं। क्रीम से अधिक जरूरी है जीवन में शुभ कार्य करना। जीवन की चर्या को कुछ ऐसा बनाओ कि उसमें अधिकाधिक समय सकारात्मक कार्य के लिए हो जैसे ध्यान, स्वाध्याय, जाप, दान, साधु सेवा, जरूरमंद की सेवा आदि सब शुभ कर्म हैं। इनका फल भी शुभ मिलता है। जितना समय हम शरीर को सुंदर बनाने में लगाते हैं उतना समय शुभ कर्म में लगा दें तो शरीर को संवारने की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। हमें प्राकृतिक ढंग से ही शरीर सुंदर मिलेगा। जब आप मरीज को डॉक्टर के पास लेकर जाते हो तो डॉक्टर मरीज देखकर कहता है इसका ऑपरेशन करना होगा, इतना खर्च आएगा। जब हम डॉक्टर से पूछते है कि ठीक तो हो जाएगा तो डॉक्टर क्या कहता है कि हम तो पूरी कोशिश करेंगे पर बाकी सब भगवान के हाथ में है।
तो देखा… इतना खर्च करने के बाद भी डॉक्टर ने भगवान को याद करने को कहा…..तो अब समझ लो कि हमारे जीवन-मरण, शरीर की सुंदरता, मधुर आवाज आदि सब कर्म के अधीन है। जन्म-मरण, शरीर को सुंदर बनाने, आवाज को मधुर करने में डॉक्टर निमित्त मात्र है। वास्तव में सब कर्म के फल से ही मिलता है।
अनंत सागर
कर्म सिद्धांत
(इकतीसवां भाग)
1 दिसम्बर, 2020, मंगलवार, बांसवाड़ा
अंतर्मुखी मुनि श्री पूज्य सागर जी महाराज
(शिष्य : आचार्य श्री अनुभव सागर जी)
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