11
Jul
छहढाला
चौथी ढाल
प्रमादचर्या, हिंसादान और दु:श्रुति अनर्थदण्ड त्यागव्रतों का स्वरूप
कर प्रमाद जल भूमि, वृक्ष पावक न विराधै।
असि धनु हल हिन्सोपकरण, नहिं दे यश लाधै।।
राग-द्वेष-करतार, कथा कबहूँ न सुनीजै।
औरहु अनरथदण्ड हेतु, अघ तिन्हैं न कीजै।।13।।
अर्थ – प्रमाद (शिथिलाचार) वश कौतूहल या आलस्य के कारण निष्प्रयोजन (व्यर्थ में) पानी बहाने, जमीन खोदने, वृक्ष काटने, आग जलाने आदि का त्याग करने को ‘प्रमादचर्या अनर्थदण्डविरतिव्रत’ कहते हैं। यश की अभिलाषा से तलवार, धनुष, हल या हिंसा के कारणभूत (साधन) वस्तुओं को किसी दूसरे को नहीं देना सो ‘हिंसादान अनर्थदण्डविरतिव्रत’ है। राग-द्वेष उत्पन्न करने वाली विकथा, किस्सा-कहानी के कहने-सुनने का त्याग करने को ‘दु:श्रुति अनर्थदण्डविरतिव्रत’ कहते हैं।
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