11
Jul
छहढाला
दूसरी ढाल
बंध और संवर तत्त्व का विपरीत श्रद्धान
शुभ-अशुभ बंध के फल मँझार, रति-अरति करै निज पद विसार।
आतम-हित हेतु विराग-ज्ञान, ते लखैं आपको कष्ट दान।।6।।
अर्थ – मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यादर्श के प्रभाव से अपने अबन्धस्वरूपी आत्म तत्त्व को भूलकर शुभ कर्मबन्ध के अच्छे फलों में प्रेम करता है और अशुभ कर्म के बुरे फलों इन द्वेष करता है, यह बन्ध तत्त्व का उलटा श्रद्धान है । आत्मा के कल्याण का कारण वैराग्य एवं सम्यग्ज्ञान है । उनको यह जीव दुःखदाई मानता है । यह संवर तत्त्व का विपरीत श्रद्धान है।
• स्त्री, पुत्र धन आदि में प्रीति होना रति है और अप्रीति होना अरति है ।
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