राजा भोज के काल में हुई थी भक्तामर काव्य की रचनाः तृष्टि दीदी
भीलूड़ा/डूंगरपुर। भीलूड़ा दिगम्बर जैन मंदिर में अंतर्मुखी मुनि पूज्य सागर जी महाराज की मौन साधना के अंतर्गत गुरुवार को प्रात: 4 बजे तीर्थंकर चन्द्रप्रभ भगवान का दूध, दही, हल्दी, शक्कर,लाल चंदन,सफेद चंदन समेत अनेक जड़ी बूटियों से पंचामृत अभिषेक किया गया। भक्तामर विधान, पूजन,हवन,जाप अनुष्ठान के 36वें दिन अनुष्ठान के मुख्य पूजन कर्ता प्रेरणा नरेन्द्र शाह, सागवाड़ा थे।
मुनि के मुखारविंद से मंत्रों का उच्चारण किया गया, साथ ही आदिनाथ से लेकर महावीर भगवान का पूजन किया गया। भगवान के एक हजार आठ नामों का जाप और जाप मंत्र, ऋद्धि मंत्र, अर्घ्य के साथ भक्तामर विधान सम्पन्न किया गया। अनिता योगेश जैन सागवाड़ा ,तिलकनन्दनी जैन ने भी पूजन का लाभ प्राप्त किया।
तदन्तर, मंदिर के मूलनायक भगवान शांतिनाथ एवं आदिनाथ भगवान के दूध अभिषेक करने का लाभ भी प्रेरणा शाह को मिला। 48 दिवसीय भक्तामर विधान में आज काव्य नम्बर 28 का विशेष आराधन करते हुए मुकेश जैन परिवार ने 56 अर्घ्य भी समर्पित किए।
इस मौके पर तृष्टि दीदी ने बताया कि भक्तामर काव्य की रचना आचार्य मानतुंग स्वामी द्वारा राजा भोज के काल में की गई थी। राजा भोज ने जब आचार्य मानतुंग को जेल डालकर उन्हें 48 तालों में बंद कर दिया, उस समय आचार्यश्री ने भगवान आदिनाथ की स्तुति की और वही स्तुति भक्तामर स्त्रोत के रूप में आज प्रसिद्ध है। यह काव्य अनेक रोग, शोक, भय आदि को दूर करता है। और साथ ही शारीरिक,मानसिक, आर्थिक संकट को भी दूर करता है।
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