आचार्य शांतिसागर महाराज कहते थे कि आज के युग में सभी कहते हैं कि धर्म का पालन कठिन है, इसे निभाने में बड़ी तकलीफों और मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। यह सही बात भी है लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि धर्म को बिल्कुल भुला दिया जाए। अगर कोई पूरी तरह से इसका पालन नहीं कर पाता है तो फिर जिसकी जितनी शक्ति है, उसे उसी के अनुसार धर्म का पालन करना चाहिए लेकिन इसमें यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि जितना भी पालन किया जाए, वह अच्छी तरह से हो। उसमें कोई कोताही या ढिलाई न हो। इससे पहले सभी को यह भी समझना होगा कि जैनधर्म क्या है, यह धर्म अत्यंत निरुपद्रवी है। इसमें एक इंद्रीय जीव से लेकर पंचेंद्रीय तक जीवों पर ममता और दया का भाव पाया जाता है। दूसरों को कष्ट न देना ही जैनधर्म का मुख्य लक्ष्य है। आचार्य श्री के अनुसार, अकर्मण्य बनकर चुपचाप बैठना अच्छा नहीं है और न हीं स्वच्छंद बनने में ही भलाई है। शक्ति को न छिपाकर अपने धर्म का पालन करना प्रत्येक समझदार व्यक्ति का कर्तव्य है।
05
Jul
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