दूसरे सत्याणुव्रत में प्रसिद्ध धनदेव सेठ की कथा इस प्रकार हैं। जम्बूद्वीप के पूर्व विदेह क्षेत्र सम्बन्धी पुष्कलावती देश में एक पुण्डरीकिणी नामक नगरी है। उसमें जिनदेव और धनदेव नाम के दो अल्प पूँजी वाले व्यापारी रहते थे। उन दोनों में धनदेव सत्यवादी था। एक बार वे दोनों जो लाभ होगा उसे आधा-आधा ले लेंगे। ऐसे बिना गवाह की व्यवस्था कर दूर देश गये। वहाँ बहुत-सा धन कमाकर लौटे और कुशलतापूर्वक पुण्डरीकिणी नगरी आ गये। उनमें जिनदेव, धनदेव के लिये लाभ का आधा भाग नहीं देता था। वह उचित समझकर थोड़ा-सा द्रव्य उसे देता था। तदनन्तर झगड़ा होने पर न्याय होने लगा। पहले कुटुम्बीजनों के सामने, फिर महाजनों के सामने और अन्त में राजा के आगे मामला पेश किया गया। परन्तु बिना गवाही का व्यवहार होने से जिनदेव कह देता कि मैंने इसके लिये लाभ का आधा भाग देना नहीं कहा था, उचित भाग ही देना कहा था। धनदेव सत्य ही कहता था कि दोनों का आधा-आधा भाग ही निश्चित हुआ था। तदनन्तर राजकीय नियम के अनुसार उन दोनों को दिव्यन्याय दिया गया। अर्थात् उनके हाथों पर जलते हुए अंगारे रखे गए। इस दिव्य न्याय से धनदेव निर्दोष सिद्ध हुआ, दूसरा नहीं। तदनन्तर सब धन धनदेव के लिये दिया गया और धनदेव सब लोगों के द्वारा पूजित हुआ तथा धन्यवाद को प्राप्त हुआ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 71 वां दिन)
शनिवार, 12 मार्च 2022, घाटोल
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