समय के साथ परिस्थितियां बदलती रहती है यह बात एक सत्य है। बदलती परिस्थियों से संस्कारों और संस्कृति पर कोई असर नही पड़ता। बस कार्य करने के तरीके और साधन बदल जाते है। काल परिवर्तन के कारण यह सब आदि काल से चला आ रहा है। वर्तमान में काल(समय) परिवर्तन के साथ समाज, परिवार और देश की जो परंपराएं बदलती जा रही है वही सब से ज्यादा हमारे विनाश का कारण बनाती जा रही है। धीरे-धीरे परिवार, समाज और देश की मर्यादाएं समाप्त हो रही। भाईचारा, प्रेम, वात्सल्य समाप्त हो रहा है। भाई-भाई, माँ-बेटे, बाप-बेटे के विचार मेल नहीं खाते। घर में सुख का हर साधन होते हुए भी हम सुख का अनुभव नही कर पा रहे है। इसी प्रकार देश, समाज की मर्यादा का भी विनाश होता जा रह हैा। कोई भी अपने आप को सुरक्षित महसूस नही कर रहा है। यही वजह है कि हमारे बच्चे परिवार, समाज और देश से दूर होते जा रहे है। उनकी मानसिकता, आचार-विचार बदल रहे है। हमारा खान-पान, रहन-सहन, आचार-विचार, पहनावा बदल गया है । बच्चे माँ-बाप की नही सुन रहे हैं और सही गलत की पहचान नही कर पा रहे है। स्वत्रंत रहना चाहते हैं, रहना भी चाहिए, पर विचारों से, न की परंपराओं से स्वतंत्र। अब तो कुछ ऐसा लगने लगा है की हम भारत में नही विदेश रह रहे हैं। क्योंकि यह तो स्पष्ट दिखाए दे रहा है कि विदेशी संस्कृति ने देश, परिवार और समाज पर अपना कब्जा जमा लिया है। हम अपनी संस्कृति और संस्कार को नही पहचान पा रहे हैं। कही न कही हमारी भी कमजोरी रही है कि हम अपनी पीढ़ी को संस्कृति और संस्कार नही दे पाए। हमारी इसी भूल के चलते आज हम देख रहे है की सरकार और समाज अनेक ऎसे अभियान चला रही जिसे देश की संस्कृति और संस्कार को हम पहचान सके । फिर भी हम देख रहे हैं कि इस सबका मूल रूप से कोई अधिक प्रभाव नही पड़ा है ।हम अपने बच्चों को अपनी परंपरा नही बता पाए। परंपराओं को धर्म से जोड़ने के कारण बच्चे परंपरा के साथ धर्म से भी दूर होते जा रहे हैं । समय पर खाने-पीने, रहन-सहन, बोलचाल, पहनने-ओढ़ने में बदलाव होना विनाशकारी नही है । लेकिन इन सबके कारण हमने अपने विचारो में परंपरा को बाद में जगह देकर ज्यादा बुरा किया है। एक कारण और भी रहा है कि हमें हर क्रिया को धर्म से जोड़ दिया, कही ना कही इस वजह से भी हमारी पीढ़ी संस्कृति से दूर होती जा रही है । यह एक सत्य है जिसे हमें स्वीकार कर लेना चाहिए कि अपने बच्चों के भविष्य के लिए ,अभी नही किया तो हम अपने अस्तित्व को नही पहचान पाएंगे।
…तो आओ क्यों न हम एक नया संकल्प लें कि हम संस्कृति उत्सव (सेलिब्रेट कल्चर) के माध्यम से हमारी आने वाली पीढ़ी को हमारी परम्परा, संस्कार और संस्कृति का ज्ञान करवाएंगे और आने वाले समय को सुखद बनाएंगे।
क्यों जरूरी
– हमारी पीढ़ी व्यसनों की ओर दौड़ रही है क्योंकि उन्हें अपनी संस्कृति का ज्ञान नही है।
– लड़कियां का अध्यात्म क्षेत्र में कितना महत्व है उसकी जानकरी नहीं होने से वह लड़कों के बराबर चलने की होड़ करती हैं।
– ये बताने के लिए कि आचार-विचार की शुद्धता खान-पान से होती है।
– शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दिनचर्या कैसी बनाए, जिससे योग, मेडीटेशन, ध्यान के लिए अलग से समय निकालने की जरूरत न पड़े।
– धर्म का सही अर्थ जानने के लिए, जिससे हम परमात्मा को जान सकें।
– सकारात्मक दृष्टि कैसे बने जिससे मैं परिवार, समाज और देश के विकास के साथ खुद को निर्मल बना सकूं।
– हमारा खान-पान, रहन-सहन, पहनावा कैसा हो जो हमारी परंपरा के अनुसार हो और उसे अपनाने से जीवन में कैसे विकास होता है ये पता चले।
– दूसरे के गुणों को कैसे गृहण करें जिससे हम गुणों का भंडार बन जाएं।
– शब्दों की पहचान के लिए कहां किस शब्द का उपयोग करे जिससे हम विनयवान बन सकें।
– हमारे बच्चे आपस में मिलें, एक दूसरे को जानें और अपने आचार-विचार एक दूसरे से शेयर करे।
– समाज का हर व्यक्ति अपने समाज के युवानों को नौकरी दे और व्यापार में सहयोग करे।
– अनाथ, गरीब, कमजोर व्यक्ति की सहायता करें यही हमारी संस्कृति है ।
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