आचरण के बिना सब व्यर्थ है । व्यक्ति की पहचान उसके आचरण से होती । वह क्या सोचता है, क्या बोलता है, क्या करता है इसी को देखकर उसकी जाति, धर्म, योग्यता का अंदाज लगाते हैं। इसी के अनुसार उसके जीवन में कर्म का बंध होता है। सज्जन, अहिंसक, सभ्य, करुणा, दया, सददृष्टि और धर्मात्मा श्रावक ( व्यक्ति) का आचरण कैसे होना चाहिए, इसका वर्णन जैन शास्त्र के तीसरे विभाजन में मिलता उसका नाम चरणानुयोग है।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में चरणानुयोग ग्रन्थ के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा है कि…
गृहमेध्यनगाराणां, चारित्रोत्पत्तिवृद्धिरक्षाङ्गम् । चरणानुयोगसमयं, सम्यग्ज्ञानं विजानाति ॥45॥
अर्थात- द्रव्यभावरूप सम्यग्ज्ञान गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति, वृद्धि और रक्षा के कारणभूत चरणानुयोग शास्त्र को जानता है।
गृहस्थ और मुनियों के चारित्र की उत्पत्ति किस प्रकार होती है, उसमें वृद्धि किस प्रकार होती है और उसकी रक्षा किस प्रकार होती है, इन सबका निरूपण जिसमें रहता है, उसे चरणानुयोग शास्त्र कहते हैं। चरणानुयोगसमय यहाँ जो ‘समय’ शब्द है उसका अर्थ शास्त्र होता है।
रत्नकरण्डक उपासकाध्ययन (रत्नकरण्डकश्रावकाचार), अमितगति श्रावकाचार, सागारधर्मामृत, अनगारधर्मामृत, मूलाचार तथा भगवती आराधना आदि इस अनुयोग के प्रमुख ग्रन्थ है ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 51वां दिन)
रविवार, 20 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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