किसी भी प्रकार के दबाव, राग-द्वेष, कषाय आदि में आकर, हंसी मजाक में, सत्य बात है पर इस भावना से शिकायत करना कि इसे डांट पड़ेगी, विश्वास घात करना, दूसरों की बात को ईर्ष्या वश इधर-उधर कहते रहना आदि कारणों से सत्य बात को प्रकट नहीं होने देना सत्याणुव्रत में अतिचार हैं। यह ध्यान रखना कि अतिचार में व्रत पूर्ण नष्ट नहीं होता, मात्र दोष लगता है, पर ऐसा बार बार करने से अनाचार होता है, जिससे व्रत पूर्ण रूप से भंग हो जाता है ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में सत्याणुव्रत के अतिचार का स्वरूप बताते हुए कहा है कि …
परिवादरहोभ्याख्यापैशुन्यं कूटलेखकरणं च।
न्यासापहारितापि च, व्यतिक्रमाः पञ्च सत्यस्य ॥56॥
अर्थात- मिथ्योपदेश , रहस्योद्घाटन, चुगलखोरी, झूठे दस्तावेज़ लिखना और धरोहर को हड़प करने के वचन कहना या धरोहर को हड़प लेना ये पाँच सत्य अणुव्रत के अतिचार हैं।
परिवाद का अर्थ मिथ्योपदेश है अर्थात् अभ्युदय और मोक्ष प्रयोजन वाली क्रिया विशेषों में दूसरे को अन्यथा प्रवृत्ति कराना परिवाद या मिथ्योपदेश है। स्त्री-पुरुषों के द्वारा एकान्त में की हुई विशिष्ट क्रिया को प्रकट करना रहोभ्याख्या है। अंगविकार तथा भौहों का चलाना आदि के द्वारा दूसरे के अभिप्राय को जान कर ईष्यावश उसे प्रकट कर देना पैशुन्य है। यही साकार मन्त्रभेद कहलाता है। दूसरे के द्वारा अनुक्त अथवा अकृत किसी कार्य के विषय में ऐसा कहना कि यह उसने कहा है अथवा किया है, इस प्रकार धोखा देने के अभिप्राय से कपटपूर्ण लेख लिखना कूटलेखकरण है। धरोहर को रखने वाला पुरुष अपनी धरोहर की संख्या भूलकर अल्पसंख्यक द्रव्य को माँग रहा है तो उससे कहना कि हाँ, ऐसा ही है, इसे त्यासापहारिता कहते हैं। इस प्रकार परिवादादिक चार और न्यासापहारिता पाँचवीं, सब मिलकर सत्याणुव्रत के पाँच अतिचार होते हैं।
सत्यव्रत की रक्षा के लिये तत्त्वार्थसूत्रकार ने क्रोधलोभभीरुत्वहास्यप्रत्याख्यानान्यनुवीचि भाषणं च पञ्च अर्थात् क्रोध त्याग, लोभ त्याग, भीरुत्व त्याग, हास्य त्याग और अनुवीचिभाषण आगमानुकूल भाषण ये पाँच भावनाएँ बताई हैं। इनके होने पर भी सत्यव्रत की रक्षा हो सकती है अन्यथा नहीं। असत्य बोलने के दो प्रमुख कारण हैं-एक कषाय और दूसरा अज्ञान। कषाय निमित्तक असत्य से बचने के लिए क्रोध, लोभ, भय और हास्य का त्याग कराया है, क्योंकि ये चारों ही कषाय के रूप हैं और अज्ञानमूलक असत्य से बचने के लिये अनुवीचि भाषण- आचार्य परम्परा से प्राप्त आगमानुकूल वचन बोलने की भावना कराई है। इस भावना के लिये आगम का अभ्यास करना पड़ता है। आगम के अभ्यास से अज्ञानमूलक असत्य दूर होता है ।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 62 वां दिन)
गुरुवार, 3 मार्च 2022, घाटोल
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