क्षुल्लक शांतिसागर महाराज से पहले जो मुनिराज थे, वह काल के प्रभाव के कारण जब आहार के लिए बस्ती (गांव) में जाते थे तो वस्त्र लपेट कर जाते थे और श्रावक के घर पहुंचने पर आहार करते समय दिगम्बर हो जाते थे। आहार के लिए उपाध्याय( जैन पुजारी) एक घर निश्चित कर देता था कि कल का आहार कहां होगा। जब मुनियों की यह स्थिति थी तो आप समझ ही सकते हैं कि क्षुल्लक आदि की क्या व्यवस्था होगी लेकिन क्षुल्लक शांतिसागर महाराज को यह चर्या ठीक नहीं लगी क्योंकि वह गृहस्थ अवस्था में स्वाध्याय करते थे। इसलिए उन्हें अच्छी तरह पता था कि मुनि चर्या किस प्रकार की होती है। इसी वजह से क्षुल्लक शांतिसागर महाराज इस प्रकार की प्रचारित पद्धति को धीरे-धीरे बदलना चाहते थे। सबसे पहले क्षुल्लक शांतिसागर ने उन लोगों के यहां आहार करना बंद कर दिया, जिनके यहां उपाध्याय पहले ही निश्चित कर आता था। उस समय लोगों को पता नहीं था कि पूर्व में निश्चित चौके में साधु आहार नहीं करते। सही तो यह है कि आहार दान देने वाले श्रावकों को अपने घर के सामने पड़गाहन करना चाहिए। क्षुल्लक शांतिसागर महाराज ने यह प्रतिज्ञा ली कि जहां पर शास्त्र के अनुसार आहार बनेगा, वह वहीं आहार करेंगे। इसका फल यह हुआ कि क्षुल्लक शांतिसागर महाराज को कई दिन तक आहार नहीं मिलता। उन्हें बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। इस कारण उपाध्याय भी नाराज हो गए क्योंकि आहार के बाद उपाध्यायों को जो कुछ खाने को मिलता था, वह मिलना बंद हो गया। तब कुछ लोगों ने क्षुल्लक जी से कहा कि इस प्रकार काम नहीं चलेगा। पंचम काल है, इसी को देख कर आचरण करना चाहिए। बस यह बात सुन कर क्षुल्लक ने कहा, यदि शास्त्र के अनुसार चर्या का पालन नहीं होगा तो उपवास कर समाधिमरण को ग्रहण कर लूंगा लेकिन आगम की आज्ञा का उल्लंघन नहीं होने दूंगा। धीरे-धीरे क्षुल्लक शांतिसागर के कारण मुनियों की आहारचर्या को ठीक कर लिया गया और क्षुल्लक के साथ अन्य मुनियों की आहार चर्या आगम के अनुसार होने लग गई। इस तरह से क्षुल्लक शांतिसागर ने समाज में एक नई क्रांति पैदा की।
26
May
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