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रत्नकरण्डश्रावकाचार श्लोक संख्या 113 में बताया गया है कि आहार दान देते समय श्रावक (धर्मात्मा) को क्या सावधानी रखनी चाहिए।
नवपुण्यैः प्रतिपत्तिः सप्तगुण समाहितेन शुद्धेन।
अपसूनारम्भाणा मार्याणामिषयते दानम्।।
पांचसून रूप पाप कार्यों से रहित आर्य (धार्मिक) पुरुष, नौ पुण्यों के (नवधा भक्ति) साथ, शुद्ध सप्त गुण से संयुक्त श्रावक के द्वारा जो आहारादि देने के रूप में आदर-सत्कार किया जाता है, वह दान कहा जाता है।
पंचसूना : ओखली, चक्की, चौका-चूल्हा, जलघटी(पानी भरना), बुहारी
नवधा भक्ति : पड़गाहन, ऊंचे आसान, पाद प्रक्षालन, अष्ट द्रव्य से पूजा, प्रणाम (नमोस्तु), मन शुद्धि, वचन शुद्धि, काय शुद्धि, आहार (भोजन) शुद्धि।
दाता के सात गुण : श्रद्धा, संतोष, भक्ति, विज्ञान, अलुब्धता, क्षमा, सत्य।
अनंत सागर
श्रावक
सैतालीसवां भाग
24 मार्च 2021, बुधवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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