इस बात का सदा स्मरण रहे कि कर्तव्य के ऊंचे मानदंड का निर्वहन करने से जंगल में भी आनंद की प्राप्ति होती है। कुछ ऐसा ही प्रसंग पद्मपुराण के पर्व 42 में वर्णित है। वह कथा आहार दान से जुड़ी है, जो श्रीराम के वनवास के समय की है। यह प्रसंग प्रेरणादायी है।
प्रसंग कुछ इस प्रकार है- वनवास के समय में श्रीराम भोजन करने से पहले अपने कर्तव्य का निर्वहन करते हुए परिवार के साथ मुनिराज को आहार के पड़गाहन के लिए खड़े हुए। तभी देवी सीता को दूर आकाश मार्ग में दो मुनिराज दिखाई दिए। उसी समय राम आदि ने मुनिराज का आहार के लिए पड़गाहन किया। वे दोनों मुनिराज चारणऋद्धि धारी थे। उनका नाम मुनि श्री गुप्ति और श्री सुगुप्ति था। दोनों मुनिराज को श्रीराम ने परिवार के साथ आहार दान दिया।
आहार दान के प्रभाव से उस स्थान पर देवों द्वारा पंचाश्चर्य हुए। रत्नों की वर्षा हुई। पुष्पवृष्टि हुई। शीतल मंद सुगन्ध हवा बहने लगी। दुदुंभी बजने लगी और जय-जयकार की ध्वनि गूंजने लगी। पात्र दान के प्रभाव से जो रत्न आदि की वर्षा हुए थी, उन्हीं रत्नों से श्रीराम ने रथ बनाया। वह रथ स्वर्णमयी, रत्न जड़ित अनेकों रचनाओं से सुंदर, मनोहर व रमणीक बना। उसी रथ रूपी विमान में श्रीराम, लक्ष्मण, देवी सीता और जटायु पक्षी बैठकर विहार करने लगे।
इस प्रसंग से यह प्रेरणा लेनी चाहिए कि नगर में मुनिराज आएं तो चौका लगाकर अवश्य ही आहार दान देना चाहिए। आहार दान के पुण्य फल से देवों ने रत्न आदि की वर्षा की थी।
शब्दार्थ व्यवहारिक
पड़गाहन- मुनिराज को विनय के साथ आहार के घर में प्रवेश कराने की विधि, आहार- भोजन।
अनंत सागर
प्रेरणा
चालीसवां भाग
4 फरवरी 2021, गुरुवार, बांसवाड़ा
Give a Reply