आज पाठशाला में बात करेंगे रावण के वंश की। इसका वर्णन पद्मपुराण में आया है। उसी के आधार पर आज की पाठशाला में चर्चा करेंगे।
रावण राक्षस जाति का नहीं था और ना ही मांसाहारी था बल्कि वह सात्त्विक भोजन करता था। कहा जाता है कि कुम्भकर्ण मांस खाता था लेकिन यह भी सही नही है क्योंकि रावण का वंश तो जैनधर्म का अनुयायी था। असल बात तो यह है कि रावण के पूर्वजों को राक्षस द्वीप राक्षसों के देव इन्द्रभीम और सुभीम ने उपहार में दिया था। यह द्वीप सात सौ योजन लम्बा और इतना ही चौड़ा है। इसी कारण रावण के वंश को राक्षस वंश कहा जाने लगा। इतिहास गवाह है कि व्यक्ति के प्रभाव, राज्य, उसके कर्म आदि से ही उसका वंश का प्रसिद्ध हो जाता है। पद्मपुराण में मुख्य रूप से चार वंशों का वर्णन है। उसके बाद इन्हीं वंशो से अनेक वंशो की उत्पत्ति हुई है। यह चार वंश इक्ष्वाकुवंश, ऋषिवंश, विद्याधरवंश और हरिवंश थे हैं। विद्याधर वंश से ही राक्षस वंश उत्पन्न हुआ है।
एक बात और रावण के दस मुख नहीं थे। एक बार बचपन में रावण ने रत्नों का हार उठाया था। उस हार में लगे रत्नों के कारण रावण के 9 मुख और दिखाई देने लगे और एक मुख था ही इस तरह 10 मुख दिखाई दिए थे। तभी से रावण का नाम दशानन हो गया। पहले तो रावण का नाम दशानन ही था रावण तो बाद में रखा गया।
अनंत सागर
पाठशाला
छयालीसवां भाग
13 मार्च 2021, शनिवार, भीलूड़ा (राजस्थान)
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