मुनि पूज्य सागर की डायरी से
आज चिंतन में पीड़ा थी। पीड़ा भी यही थी कि जिनकी आराधना से कर्मों का नाश होता है, आज उनकी ही आराधना के नाम पर अहंकार में आकर भगवान के अभिषेक,पूजन के नाम पर लोग लड़ -झगड़ रहे हैं। आने वाली पीढ़ी में धर्म के नाम पर बंटवारे का जहर दे रहे हैं। इतनी कषाय हो गई कि पंथ के नाम पर जिनेन्द्र की मूर्ति और संत के नाम संतों को नमस्कार तक नहीं कर रहे हैं। धर्म के नाम पर शंकाएं बहुत हो रहीं हैं, पर उनका समाधान आगम के ग्रन्थों के नाम बताए बिना किया जा रहा है। प्राचीन तीर्थों के नाम परिवर्तन हो रहे हैं। प्राचीन ग्रन्थों का स्वरूप बदला जा रहा है। वास्तु-ज्योतिष के नाम पर प्राचीन मंदिरों का स्वरूप बदला जा रहा है, इन सबके कारण समाज कई भागों में बंट रहा है और आने वाली युवा पीढ़ी को जहर से भरा धर्म सौंप रहे हैं। इन सब के चलते आज देव,शास्त्र और गुरु के प्रति आस्था,श्रद्धा ,विश्वास कमजोर हो रहा है। समाज के लोगों के पास आज मानवता, सभ्यता,विनय, सहनशीलता,सहनशक्ति जैसे गुण ही नहीं रहे। आपस के विवाद के कारण हम संस्कृति, संस्कार और इतिहास का नाश हो रहा है।
मुझे तो चिंतन में यह एहसास हुआ कि कहीं हम अपने धर्म की हत्या तो नहीं कर रहे। अब तो ऐसा लगता है कि अगर इन विवादों को विराम नहीं दिया तो आने वाले समय में जैनधर्म के मूल सिद्धान्तों को पालने वाला ही नहीं रहेगा। अब समय आ गया है इन विवादों को विराम देने का। क्या इन सब विवादों को जैनधर्म के बड़े संत, जिनकी बात को समाज,संस्थाएं एक स्वर में स्वीकार करती तो वह कब अपनी चुप्पी तोड़कर, आपस में चर्चाकर समाज की पूजा आदि पर निषकर्ष निकाल कर समाज के विवादों में समाप्त करेंगे?
सोमवार, 16 अगस्त, 2021 भीलूड़ा
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