आपको यह पता ही होगा कि इतिहास में सिकंदर नाम का एक महान योद्धा हुआ करता था। वह 20 साल की उम्र में ग्रीस का राजा बन गया था। वह पूरी दुनिया पर शासन करना चाहता था। सिकंदर ने यह सुन रखा था कि भारत में बहुत पहुंचे हुए संत हुआ करते हैं। एक दिन सिकंदर सिंधु नदी के किनारे पर पहुंचा। वहां उसे एक संत दिखाई दिए। उनके मुख के शांत भाव देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया और उन्हें अपने साथ ग्रीस चलने व साथ महल में रहने का आग्रह करने लगा। इसके साथ ही उसने संत महराज को धन-दौलत, हीरे-जवाहरात देने की बात कही। संत ने उसके साथ ग्रीस जाने से मना कर दिया और कहा कि मैं धन-दौलत का त्याग कर चुका हूं। मुझे इनकी जरूरत नहीं है।
सिकंदर को यह सुनकर बहुत गुस्सा आया और उसने अपनी तलवार निकाली, पर साधु के भाव में कोई परिर्वतन नहीं आया। साधु ने कहा- जैसे तुम इस तलवार से मेरे शरीर को कटते हुए देखोगे, वैसे ही मैं भी कटते हुए देखूंगा।
साधु ने समझाया कि तुम मेरे शरीर को ही काट सकते हो, आत्मा को नहीं। आत्मा तो नश्वर है। यह सुनकर सिकंदर की तलवार नीचे गिर गई और उसने संत से माफी मांगी। वह अपने देश लौट गया। कहा जाता है कि अपने अंतिम दिनों में वह बहुत बीमार हो गया था। मरने से पहले अपनी मां से मिलना चाहता था। उसने अपने उपचार करने वालों से कहा कि आप मेरे से जो लेना चाहते हैं, ले लो। लेकिन मुझे मेरी मां के आने तक जिंदा रखो। हकीमों ने कहा कि आपको नहीं बचाया जा सकता।
उसे बहुत बुरा लगा कि इतनी धन-दौलत होने के बाद भी कोई उसे चंद दिनों की जिंदगी नहीं दे सकता। इसके बाद उसने घोषणा की कि मरने के बाद उसे इस प्रकार से ले जाया जाए कि सभी को उसके दोनों खाली हाथ नजर आएं और लोग यह समझ सकें कि इतनी धन-दौलत का मालिक होने के बाद भी वह मरने के बाद खाली हाथ जा रहा है।
कहानी से सीख :
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपने जीवन में किसी भी चीज का मान नहीं करना चाहिए। हमें उत्तम मार्दव धर्म का ही पालन करना चाहिए, क्योंकि हमारे अच्छे-बुरे कर्म ही हमारे साथ जाते हैं।
अनंत सागर
कहानी (इक्यावनवां भाग)
18 अप्रैल,रविवार 2021
भीलूड़ा (राज.)
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