जब मुनि श्री श्रवणबेलगोला की ओर विहार कर रहे थे तो बेंगलुरु में ही उन्होंने अपना चातुर्मास किया था। धर्म की, ज्ञान की जो गंगा उन्होंने बहाई, उसमें नहा कर तो हम जैसे कृतार्थ हो गए। मुनि श्री ने हमें नकारात्मक चीजों से दूर रहना सिखाया। उन्होंने हमें सिखाया कि छोटे हों या फिर बड़े, किसी के भी सद्गुणों को तुरंत ग्रहण कर लेना चाहिए। उनसे मिलने के बाद हमने कई आदतों को अपनाया है, परिवार के सभी लोग जिंदगी को सुलझे हुए नजरिए से देखने लगे हैं। तनाव अब हमें उतना परेशान नहीं करता। चीजों को आसानी से सुलझाना हमने उन्हीं से सीखा है।
शैलेश- रेखा सेठी
बेंगलुरु