राम के पास धन, जाति सब कुछ था, पर अहंकार नहीं था तो सम्यग्दर्शन बना रहा। जब राम को धन आदि छोड़ना पढ़ा तो उन्होंने सहजता से छोड़ा, लेकिन सम्यग्दर्शन और धर्म को नहीं छोड़ा। वह जंगल में राजा बनकर सुख, शांति से रहे। धन नहीं होने पर भी राम सुखी रहे, क्योंकि उनके पास सम्यग्दर्शन और धर्म था और दूसरी ओर रावण ने धन, बल आदि के अहंकार में सम्यग्दर्शन एवं धर्म को छोड़ दिया। अर्थात शुभ क्रिया, विचार आदि को छोड़ दिया तो धन, बल आदि भी उसके कोई काम नहीं आया। उसे युद्ध में हारना पड़ा और धन, बल, सम्मान आदि और सम्यग्दर्शन भी चला गया। अंत में मरण को प्राप्त हुआ। संसार में कोई भी मनुष्य पुत्र आदि का नाम रावण नही रखता है, क्योंकि उसने सम्यग्दर्शन को छोड़ दिया था। राम के पास सम्यग्दर्शन था तो धन आदि वापस आ गया और रावण के पास धर्म एवं सम्यग्दर्शन नहीं रहा तो जो था वह भी चला गया। मनुष्य को कर्मजानित प्रतिष्ठा (धन), ज्ञान, कुल, बल, ऋद्धि , तप , शरीर रूप इन आठ का मद नहीं करना चाहिए ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में आठ मदों में बचने का चिंतन बताते हुए कहा है कि …
यदि पापनिरोधोऽन्यसम्पदा किं प्रयोजनम् ।
अथ पापास्त्रवोऽस्त्यन्यसम्पदा किं प्रयोजनम् ॥ 27॥
अर्थात- अगर पाप का निरोध है अर्थात् रत्नत्रयरूप धर्म का सद्भाव है तो कुल, ऐश्वर्य आदि अन्य सम्पत्ति से क्या मतलब है और यदि पाप का आस्रव अर्थात् मिथ्यादर्शन आदि का सद्भाव है तो संसार बढ़ाने वाले कुल, ऐश्वर्य आदि अन्य सम्पत्ति से क्या मतलब है?
धन,जाति आदि जिनसे सांसारिक सुख मिलता है वह किसी भी परिस्थिति में ग्रहण करने योग्य नहीं हैं। अगर पुण्य से मिल जाए तो उसका बार बार चिंतन करना कि मेरे पास तो सम्यग्दर्शन आदि धर्म है तो इन सब से क्या प्रयोजन और अगर पाप है तो भी धन, जाति से क्या प्रयोजन। पाप के कारण संसार के दुःख और नरक आदि अशुभ गति तो मिलने वाली है। धन, जाति आदि से किसी भी परिस्थिति में पाप/ दुःख जाने वाले नहीं । यह कह सकते हैं कि धन, जाति आदि से सुख नहीं मिलता, बल्कि धर्म /सम्यग्दर्शन से मिलता है तो फिर प्रतिष्ठा (धन), ज्ञान, कुल, बल, ऋद्धि, तप, शरीर/रूप इन आठ का मद नहीं करना चाहिए। यह हर परिस्थिति में दुःख देने वाले ही हैं । सार है कि इन सबका अहम ही सम्यगदर्शन का शत्रु है।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 33 वां दिन)
बुधवार, 2 फरवरी 2022, बांसवाड़ा
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