समाज का अहंकार समाज के इतिहास को नष्ट कर देता है। समाज के 4-6 लोग समाज का भविष्य लिखना चाहते हैं। जैन समाज का इतिहास देव, शास्त्र और गुरु से शुरू होता है। अगर वही नहीं रहें तो जैन समाज का इतिहास नष्ट हो जाएगा अथवा उसपर कलंक लग जाएगा। समाज देव,शास्त्र और गुरु से बड़ा हो सकता है क्या? वर्तमान में समाज में इतना पुण्य तो है ही नहीं कि वह साक्षात तीर्थंकरों के दर्शन कर सके और इतना ज्ञान भी नहीं कि वह शास्त्र पढ़कर धर्म के स्वरूप को समझ सके। अब मात्र गुरु ही बचे हैं जिसके सानिध्य में रहकर हम जैन इतिहास को सुरक्षित रख सकते हैं। समाज यह कहकर अपने कर्तव्य से इतिश्री नहीं कर सकता कि वह साधु ऐसा है, वैसा है। मैं समाज के हर व्यक्ति से पूछना चाहता हूं कि अगर तुम्हारा बेटा गलत राह पर निकल जाए तो क्या तुम जगह- जगह उसकी चर्चा करोगे या फिर बेटे को समझाओगे? तो फिर साधुओं की चर्चा चौराहे पर क्यों करें? उनके पास जाकर चर्चा करें। चाहे समाज गलत हो अथवा साधु, दोनों ही स्थिति में कलंक समाज, धर्म के इतिहास पर ही लगेगा? तो क्यों अहंकार, कषाय में आकर समाज और धर्म को कलंकित कर रहे हैं। रावण, कौरवों ने भी अहंकार के कारण अपने इतिहास को कलंकित कर दिया जबकि, रावण के अलावा उसके वंश के लोग साधु बनकर स्वर्ग और मोक्ष को ही प्राप्त हुए हैं। तो क्यों तुम रावण और कौरव बन रहे हो? राम और पांडव बनने के लिए क्यों नहीं पुरुषार्थ कर रहे हो? आप ही सोचें- रावण बनकर पूरी लंका का नाश करना है या राम बनकर लंका और अयोध्या दोनों के इतिहास को सुरक्षित रखना चाहते हैं?
अनंत सागर
अंतर्मुखी की दिल की बात
5 जुलाई,2021, सोमवार
लोहारिया (राज.)
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