पद्मपुराण में बताए गए रावण के जीवन चरित्र को पढ़ते हैं तो पाते हैं कि जितना ज्ञान, शक्ति, नाम, कुल, जाति, तप और शरीर आदि की सुंदरता उसके पास थी, उसका वर्णन शब्दों मे नहीं किया जा सकता। उसने जितना तप किया, उतना तप वह मुनि बनकर करता तो उसी भव से मोक्ष जा सकता था। कहते हैं कि धन इतना था कि उसकी लंका सोने की बनी थी। कुल और जाति की बात करें तो उनके परिवार के सदस्यों ने मुनि बनकर मोक्ष गमन किया है। रावण ने अपनी शक्ति से कई राजाओं को बंधी बनाकर अपने अधीन कर लिया। ज्ञान की बात करें तो उसने हजारों विद्याएं सिद्ध की थी और जिनेन्द्र की अर्चना में लगा रहता था। शरीर भी हष्ट पुष्ट था, लेकिन रावण को इतना मद या अहंकार आ गया कि संकट के समय उसका कोई गुण उसके काम न आ सका। अहंकार व्यक्ति की बुद्धि हर लेता है। विवेक को नष्ट कर देता है । जैन सिद्धान्त कहता है कि ज्ञान आदि सब कर्म के अधीन हैं न कि स्वयं के अधीन। कर्म कहता है मद ही मनुष्य को दुःख और संकट में डालता है। यह मद मनुष्य का सम्यग्दर्शन से नष्ट करता है ।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में आठ मदों का वर्णन करते हुए लिखा है कि ….
ज्ञानं पूजां कुलं जाति, बलमृद्धिं तपो वपुः ।
अष्टावाश्रित्य मानित्वं, स्मयमाहूर्गतस्मयाः ॥25॥
अर्थात- ज्ञान, प्रतिष्ठा/पूजा, कुल ,जाति, बल, ऋद्धि, धन सम्पत्ति, तप, शरीर इन आठों का आश्रय लेकर अभिमानी होना गर्व से रहित गणधर आदि देव गर्व /मद कहते हैं।
जिनका मद नष्ट हो गया है, ऐसे जिनेन्द्र देव ज्ञानादिक आठ वस्तुओं का आश्रय लेकर गर्व करने को स्मय या मद कहते हैं।
– अपने क्षयोपशमिक ज्ञान का अहंकार करना ज्ञान मद है।
– अपनी पूजा-प्रतिष्ठा लौकिक सम्मान का गर्व करना पूजा मद है।
– पिता के वंश को कुल और माता के वंश को जाति कहते हैं। इनका अहंकार करना कुलमद और जातिमद है।
– शारीरिक शक्ति को बल कहते हैं, इसका गर्व करना बलमद है।
– बुद्धि आदि ऋद्धियों को अथवा गृहस्थ के धन, वैभव को ऋद्धि कहते हैं, इसके अहंकार को ऋद्धिमद कहते हैं।
– अनशनादि तपों को तप कहते हैं, इसका गर्व करना तपमद है ।
– स्वस्थ तथा सुन्दर शरीर का गर्व करना शरीरमद है।
शिल्प कलाकौशल का भी तो मद होता है, इसलिए नौ मद होने पर मद की आठ संख्या सिद्ध नहीं होती ? इसका उत्तर है कि शिल्प का मद ज्ञान मद में ही अन्तर्भूत हो जाता है, इसलिए नौवाँ मद मानने की आवश्यकता नहीं है।
सार है कि व्यक्ति को उक्त सभी आठ मद से बचते हुए जीवन यापन करना चाहिए, अन्यथा मद आने पर जीवन के सभी गुण व्यर्थ हो जाते हैं।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 31 वां दिन)
सोमवार, 31 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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