सम्यक दर्शन के आठ अंग हमें अशुभ कर्मों से बचाते हुए सद्मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यह आठ अंग हमारे जीवन के कल्याण की दिशा में बेहद महत्वपूर्ण हैं। एक श्रावक को इनका पालन कर मोक्ष मार्ग के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। इन अंगों को समझने के लिए और जीवन में धारण के लिए कहानियों, उदाहरणों एवं कथानकों का सहारा लिया गया है, ताकि हम बेहतर ढंग से इनकी व्याख्या को समझकर इनका अनुसरण कर सकें।
आचार्य समन्तभ्रद स्वामी जी ने रत्नकरण्ड श्रावकाचार में श्लोक संख्या 11 से 18 तक में सम्यग्दर्शन के आठ अंगों का वर्णन करते हुए उनका स्वरूप बताया है। श्लोक 19-20 में इन आठ अंगों को लेकर आठ विद्वतजनों या महापुरूषों के नामों का वर्णन किया गया है, जिन्होंने इन अंगों के पालन का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया है।
तावदञ्जनचौरीऽङ्गे, ततोऽनन्तमतिः स्मृता ।
उडायनस्तृतीयेऽपि तुरीये रेवती मता ॥ 19 ॥
ततो जिनेन्द्रभक्तोऽन्यो, वारिषेणस्ततः परः ।
विष्णुश्च वजनामा च, शेषयोर्लक्ष्यतां गतौ ॥20॥
अर्थात – क्रम से पहले निरूशंकित अंग में अंजन चोर, दूसरे निरूकांक्षित अंग में अनन्तमति स्मरण की गई है। तीसरे निर्विचिकित्सा अंग में उदायन नाम का राजा और चौथे अमूढ़दृष्टि अंग में रेवती रानी का उल्लेख हुआ है। इसी तरह पाँचवे उपगूहन अंग में जिनेन्द्रभक्त सेठ, छठे स्थितिकरण अंग में वारिषेण राजकुमार, सातवें वात्सल्य अंग और आठवें प्रभावना अंग में क्रमशः विष्णु कुमार मुनि और वज्रकुमार नामक मुनि प्रसिद्धि को प्राप्त हुए।
सहज और सरल तरीके से समझने के लिए, श्रद्धा और विश्वास को मजबूत करने के लिए कहानियों, घटनाओं आदि का सहारा लिया जाता है। सम्यग्दर्शन के आठ अंग का महत्व समझाने के लिए भी जैन शास्त्रों में कहानियां उल्लेखित की गई हैं। जैन ग्रंथों को समझने की दृष्टि से चार भागों में बाटा गया। प्राचीन समय हुई घटनाओं को कहानियों, महापुरुषों के चारित्र आदि का वर्णन प्रथमानुयोग ग्रन्थ में किया गया। वहां पर विस्तार के साथ आठ प्रसिद्ध व्यक्तियों की कहानी का वर्णन किया गया है। यहां श्लोक में मात्र नाम बताए हैं। कहानियां हमारे अंदर ऊर्जा भरती हैं और हमें आगे बढ़ने का उपदेश देती हैं तथा हमारे मन, मस्तिष्क को पवित्र कर सम्यक मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं।
अनंत सागर
श्रावकाचार ( 18वां दिन)
मंगलवार , 18 जनवरी 2022, बांसवाड़ा
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