परिवार में एक दूसरे के प्रति समर्पण का भाव, त्याग, विनय ही परिजनों को एकसूत्र में पिरोए रखता है। धन आदि तो मात्र परिवार की व्यवस्था चलाने के लिए है। राम-लक्ष्मण और भरत से प्रेरणा लेनी चाहिए कि परिवार में प्रेम कैसा होना चाहिए। पद्मपुराण पर्व 83 का एक प्रसंग परिवार की सुख-शांति और समृद्धि को बताने वाला है। इस प्रसंग से हमें प्रेरणा लेनी चाहिए कि हम परिवार की अखण्डता कैसे बनाए रखें?
राम के अयोध्या आने के बाद भरत ने दीक्षा के भाव बनाए तो राम-लक्ष्मण ने भरत से कहा कि राज्य पर शासन करने के लिए ही पिता ने आपका अभिषेक किया है। आपही हम लोगों के स्वामी हो। आप ही हमारा पालन कीजिए। मैं (राम) तुम पर छत्रधारण करता हूं ,शत्रुघ्न चमर धारण करता है और लक्ष्मण तुम्हारा मंत्री है। अगर तुम मेरी बात नहीं मानते हो तो मैं आज ही वन की और चला जाऊंगा। रावण को मारने के बाद हमतो तुम्हारे दर्शन को आए थे। अभी तुम इस विशाल राज्य का भोग करो, फिर हमसब एकसाथ दीक्षा लेने वन की और जाएंगे। राम भरत से कहते हैं कि तुम पिता के वचनों का पालन करो। यदि तुम्हें राज्य, धन आदि इष्ट नहीं है तो भी कुछ समय बात दीक्षा लेना। भरत यह सुनकर राम से कहते हैं कि मैंने पिता के वचनों का पालन अच्छे से किया है, लम्बे समय तक राज्य की रक्षा की है, भोग समूह का सम्मान किया है। परम दान दिया है,साधुओं की सेवा की है। अब तो जो पिता ने किया है, वही करना चाहता हूं।
अनंत सागर
प्रेरणा
27 मई 2021, गुरुवार
भीलूड़ा (राज.)
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